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साहित्य लहर

कविता : बारिश की बूंदें

बारिश की बूंदें… अपने मन के पासकहीं भी ऐसा लगता जंगल में तब आकर घर के जैसा लगता मानों तुम अब भी लगती उतनी ही सुंदर गोरी भोली तुम्हें देखकर हंसती बाघ के बच्चों की टोली घर की याद… #राजीव कुमार झा

अपने मन के पास
कहीं भी ऐसा लगता
जंगल में तब आकर
घर के जैसा लगता
मानों तुम अब भी लगती
उतनी ही सुंदर
गोरी भोली
तुम्हें देखकर हंसती

बाघ के बच्चों की
टोली
घर की याद
अक्सर तुम्हें सताती
ऐसे ही तुम मन की
बात बताती
प्यार में कभी खूब
इतराती
नदी किनारे
कभी शाम में

कोई गीत सुनाती
चांद को
घर आंगन से
इन सूनी राहों में
तब तुम
अपने पास बुलाती
तुमको बारिश की
बूंदें खूब सुहाती

गढ़वाल सभा भवन में निशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन


बारिश की बूंदें... अपने मन के पासकहीं भी ऐसा लगता जंगल में तब आकर घर के जैसा लगता मानों तुम अब भी लगती उतनी ही सुंदर गोरी भोली तुम्हें देखकर हंसती बाघ के बच्चों की टोली घर की याद... #राजीव कुमार झा

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