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साहित्य लहर

घरेलू अव्यवस्था

1952 : अवध किशोर झा की डायरी...

घरेलू अव्यवस्था… वस्तुत: हम सभी दुखी हैं और तब तक दुखी रहेंगे जब तक कि इन सभी वस्तुओं का मूल्य न समझ लें। बाह्य स्वच्छता और सुंदरता पर ही भीतरी आत्मा और विचारों का पवित्र होना संभव है। अतः हमलोगों को चाहिए कि इन आवश्यक उपकरणों को व्यवहार में लाएं अन्यथा जीवन अव्यवस्थित ही रहेगा।

एक गृहस्थ का जीवन बहुत कुछ उसके घरेलू व्यवहार की सामग्रियों की पूर्णता पर निर्भर है।एक परिवार अपने को तब तक सुखमय नहीं बना सकता जब तक कि वह अपने को जीवन की आवश्यक सामग्रियों से पूर्ण नहीं कर लेता। हमारे परिवार में इन सब वस्तुओं की उपेक्षा की गयी है.

लेकिन मेरा यह भी विश्वास है कि हमारा परिवार इन सब सामग्रियों की कमी से अपने को कभी भी सुखी नहीं बना सकता।यह समझना भारी भूल होगी कि हमारा परिवार सुख सामग्रियों की उपेक्षा कर अपनी आत्मदृढ़ता और सद्भावना में ही संतोष और परमसुख का अनुभव करता है।

वस्तुत: हम सभी दुखी हैं और तब तक दुखी रहेंगे जब तक कि इन सभी वस्तुओं का मूल्य न समझ लें। बाह्य स्वच्छता और सुंदरता पर ही भीतरी आत्मा और विचारों का पवित्र होना संभव है। अतः हमलोगों को चाहिए कि इन आवश्यक उपकरणों को व्यवहार में लाएं अन्यथा जीवन अव्यवस्थित ही रहेगा।

संगति


घरेलू अव्यवस्था... वस्तुत: हम सभी दुखी हैं और तब तक दुखी रहेंगे जब तक कि इन सभी वस्तुओं का मूल्य न समझ लें। बाह्य स्वच्छता और सुंदरता पर ही भीतरी आत्मा और विचारों का पवित्र होना संभव है। अतः हमलोगों को चाहिए कि इन आवश्यक उपकरणों को व्यवहार में लाएं अन्यथा जीवन अव्यवस्थित ही रहेगा।

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