माता वसुंधरा की गोद… वे इस घर को छोड़ कर चले गए।मेरे मां बाप अभी इस घर में रह रहे हैं। उनके साथ हम भाई बहन भी इस घर में रह रहे हैं। हमारे टोले मुहल्ले में हमारे जो मित्र बंधु वास करते हैं, उनका भी अपना घर है। वे सुख से अपने बिछावन पर सो रहे होंगे। प्रस्तुति : राजीव कुमार झा
अभी रात्रि के करीब 8 बजे होंगे। आज दिन भर पानी बरसता रहा। अभी भी पानी बरस रहा है। बाहर बिल्कुल अंधेरा है। जिस मकान में मैं रह रहा हूं, वह मिट्टी का है। बरसात के कारण इसके कुछ हिस्से टूट कर गिर चुके हैं, बाकी भी गिरने की दशा में है। घर कुछ इस तरह बना हुआ है कि बरसात में काफी दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। यद्यपि इस घर में मैं बरसों से रह रहा हूं लेकिन इसकी दीवारों की मरम्मत नहीं हो पाई है।
जब मैं स्कूल में पढ़ता था तब मेरे दिन का अधिकांश समय वहीं बीत जाता था लेकिन अब मैं ज्यादातर घर पर ही रहता हूं। मेरी मां इस घर में बहुत दिनों से रह रही है। उसे घूमने फिरने या बाहर जाने का बहुत कम मौका मिलता है। इसलिए उसे घर में ही रात दिन रहना पड़ता है। यही कारण है कि उसे इस घर से ज्यादा प्रेम है और वह इसकी हिफाजत के लिए अधिक चिंताशील रहती है। यह घर हमारा स्थाई घर तो नहीं हो सकता। जीवन की दिशा किधर मुड़ेगी कौन जानता है? इस अनंत आकाश के नीचे कहीं तो अवश्य ही स्थान मिलेगा। घर में जो रहनेवाले थे, जिन्होंने इसको बनाया, वे मेरे पितामह थे।
वे इस घर को छोड़ कर चले गए।मेरे मां बाप अभी इस घर में रह रहे हैं। उनके साथ हम भाई बहन भी इस घर में रह रहे हैं। हमारे टोले मुहल्ले में हमारे जो मित्र बंधु वास करते हैं, उनका भी अपना घर है। वे सुख से अपने बिछावन पर सो रहे होंगे। उनके साथ भी उनकी स्त्रियां, बच्चे और अन्य संबंधी सो रहे होंगे। बड़ा ही कठिन समय है। अपने अपने घरों में सभी सो जाया करते हैं। किसी की ऊंची अट्टालिका है तो किसी की टूटी फूटी झोपड़ी। मेरे पिता भी बाहर से आकर भू पर लेट जायेंगे।
वर्षों से उनका शयनस्थान माता वसुंधरा की गोद रहा है। अभी अगर मेरा घर गिर पड़े तो मुझे अपने टोले मुहल्ले के लोगों के घर शरण खोजनी पड़ेगी। वे मुझे अपने घरों में थोड़े ही सोने देंगे। उनकी भी तो स्त्रियां बाल बच्चे हैं। इसके अलावा उनका भविष्य भी तो उज्ज्वल है। वे एक से चार होंगे तो इसके लिए उनको जगह चाहिए ही। मुंगेर गया था तो एक सप्ताह ठहरने के लिए घर खोजने में पूरे तीन घंटे समय लगाना पड़ा था।
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रांची में तो बिना जरूरत के दूसरों के घर ठहरना पड़ा। क्या जरूरत थी रांची जाने की ? बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ा। दूसरों के घर पर जमीन के फर्श पर लेटा रहना पड़ा। कोई किसी को अपना घर क्यों रहने के लिए दे। घर नहीं रहने से वर्षा, जाड़ा, गर्मी और शीत में बड़ी तकलीफ होती है। भोजन के अभाव में भी मनुष्य मर जाता है। जीने के लिए आज इन सब चीजों को जुटाना पड़ता है। कपड़े के बिना भी तो काम नहीं चलता। रांची गया था तो कुछ साधुओं को देखा था जो बिना घर बार के थे और तकलीफ उठा रहे थे।