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साहित्य लहर

संगति

1952 : अवध किशोर झा की डायरी...

संगति… इन मित्रों में कुछ मित्र हमारे वास्तविक हितैषी हैं। यद्यपि ऐसे मित्रों से भी हमें कुछ भी लाभ नहीं है फिर भी इन मित्रों से हमारी संगति नहीं छूटती। इन लोगों में न जाने कौन सा आकर्षण है जो कि हमें इनसे बातचीत करने के लिए विवश करता है।

प्रत्येक मनुष्य के़ जीवन निर्माण में संगति का बहुत बड़ा स्थान है। जैसी उसकी संगति होगी वैसा ही उसका जीवन होगा। हमारे जीवन में भी मित्रों की संगति का प्रभाव पड़ा है बचपन में कुछ बुरे मित्रों की संगति के कारण मेरे मन पर बुरे संस्कार पड़े। इसके बाद कितने और साथी हुए जो कि उदंड तथा मूर्खाधिराज थे।

इन्होंने हमारे जीवन को अपने कटु वाक्यों से तथा दुर्व्यवहारों से दुखमय बना दिया। इनकी संगति को त्यागने से ही कल्याण संभव है। मेरा विश्वास है कि भविष्य में इनकी संगति छोड़कर ही हम उन्नति कर सकते हैं। इनसे उतना ही संपर्क रखना चाहिए जितना कि जरूरी है। इन मित्रों में कुछ तो मूर्ख हैं, कुछ स्वार्थी हैं और कुछ बुड़बक हैं।

ऐसा कोई नहीं है जो कि वास्तव हमारा हितैषी हो। इन मित्रों की संगति में पड़ कर हमें अपना बहुत सा समय व्यर्थ में बिताना पड़ता है। ये अपने विचारों के लोग हैं। इनके जीवन का उद्देश्य भी भिन्न है। यद्यपि कि वास्तव में हमारा कोई भी मित्र नहीं है फिर भी जो हैं, उन्हीं के बारे में लिख रहा हूं।

इन मित्रों में कुछ मित्र हमारे वास्तविक हितैषी हैं। यद्यपि ऐसे मित्रों से भी हमें कुछ भी लाभ नहीं है फिर भी इन मित्रों से हमारी संगति नहीं छूटती। इन लोगों में न जाने कौन सा आकर्षण है जो कि हमें इनसे बातचीत करने के लिए विवश करता है। इन मित्रों के प्रति हमारा व्यवहार भी वैसा ही होता है जैसा कि उन लोगों का होता है।

पुस्तकालय और पुस्तकों का अध्ययन


संगति... इन मित्रों में कुछ मित्र हमारे वास्तविक हितैषी हैं। यद्यपि ऐसे मित्रों से भी हमें कुछ भी लाभ नहीं है फिर भी इन मित्रों से हमारी संगति नहीं छूटती। इन लोगों में न जाने कौन सा आकर्षण है जो कि हमें इनसे बातचीत करने के लिए विवश करता है।

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