पुस्तक समीक्षा : मेहनत की कमाई का सुख
पुस्तक समीक्षा : मेहनत की कमाई का सुख… राजा ने जब किसान से पूछा कि तुम वापस क्यों नहीं आये। तब किसान हाथ जोड़कर बोला, हुजूर बिना काम किये मै निठल्ला व कामचोर हो जाऊंगा। राज महल में मुझे कोई परेशानी नहीं है लेकिन काम करने में जो सुख है वह सुख निठल्ला बैठे रहने में नही मिलता है। #समीक्षक सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
मेहनत की कमाई का सुख एक सोलह पृष्ठों की पुस्तक हैं जिसमें एक किसान की ईमानदारी बताई गई है। राजा का खोया हुआ हार जब वह लौटाने के लिए राज महल जाता है तब राजा उसकी ईमानदारी पर खुश होकर किसान को बिना काम काज किये आराम से राज महल में रहने की आज्ञा देता है।
एक दिन वह राजा से हाथ जोड़कर विनती करता है कि आपकी आज्ञा हो तो मैं अपने परिवार वालों को भी यहां ले आऊं। राजा की आज्ञा पाकर किसान चला गया लेकिन वापस नहीं लौटा। इस पर राजा ने अपने सिपाहियों को भेज कर किसान को बुलवाया। सिपाहियों ने देखा कि किसान तो खेती कर रहा है। वे उसे पकड़ कर राजा के पास लाये और सारी बात बताई।
राजा ने जब किसान से पूछा कि तुम वापस क्यों नहीं आये। तब किसान हाथ जोड़कर बोला, हुजूर बिना काम किये मै निठल्ला व कामचोर हो जाऊंगा। राज महल में मुझे कोई परेशानी नहीं है लेकिन काम करने में जो सुख है वह सुख निठल्ला बैठे रहने में नही मिलता है। किसान की ईमानदारी व काम के प्रति निष्ठा को देखकर राजा ने उसे कीमती कंगन उपहार में दिया।
यह कहानी बहुत ही छोटी है लेकिन बडे बडे चित्र देकर इसे 16 पृष्ठों में बडे बडे चित्र देकर आगे बढाया हैं, वरना किसी पृष्ठ में एक लाईन तो किसी में तीन-चार लाईन तो किसी पृष्ठ में 6 से 9 लाईनें देकर कहानी को प्रस्तुत किया गया है। कहानी के आरंभ में दिया गया चित्र आंखों को खटकता हैं चूंकि किसान की जगह राजा व राजा की जगह किसान का चित्र प्रकाशित हो गया हैं। कुल मिलाकर कहानी के माध्यम से ईमानदारी के साथ जीवन व्यतीत करने का संदेश दिया गया है।
लेखक : दर्शन सिंह आशट
त्रांकन : सुरेश लाल
मूल्य : 35 रुपए,
पृष्ठ : 16 (कवर पेज अलग)
निदेशक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, नेहरू भवन, 5 इंस्टीट्यूशनल एरिया, फेज-।।, वस्त कुंज, नई दिल्ली 110070 ध्दारा प्रकाशित