साहित्य लहर

ग्रामीण युवक और हम

1952 : अवध किशोर झा की डायरी...

ग्रामीण युवक और हम… मेरे विचार से गांव के युवक मेरे मन में अपनी योग्यता से भिन्न स्थान रखते हैं और इन सभी लोगों से मेरा कोई खास संबंध नहीं है। स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के मैं एक साथी की तरह हूं। कुछ और लोग भी हैं जो कि बातचीत के साथी हैं।

अपने गांव के अन्य युवकों के विचार में मेरा उनसे क्या संबंध है और यहां मेरा क्या स्थान है, यह मैं ठीक से नहीं कह सकता लेकिन इतना मैं जानता हूं कि उनमें से अधिकांश मेरी अवज्ञा ही करते हैं। यह कोई उनकी गलती नही है बल्कि मेरी अपनी कमी है।

मेरे विचार से गांव के युवक मेरे मन में अपनी योग्यता से भिन्न स्थान रखते हैं और इन सभी लोगों से मेरा कोई खास संबंध नहीं है। स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के मैं एक साथी की तरह हूं। कुछ और लोग भी हैं जो कि बातचीत के साथी हैं।

घरेलू अव्यवस्था


ग्रामीण युवक और हम... मेरे विचार से गांव के युवक मेरे मन में अपनी योग्यता से भिन्न स्थान रखते हैं और इन सभी लोगों से मेरा कोई खास संबंध नहीं है। स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के मैं एक साथी की तरह हूं। कुछ और लोग भी हैं जो कि बातचीत के साथी हैं।

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