साहित्य लहर

प्रेयसी ने प्रथम मिलन को पुकारा “भाग 02”

दिल जोर से बोल रहा धक-धक जैसे ही वो चूमी मस्तक कर रही प्यार की कुछ बातें बीते तुम बिन कैसे रातें अंदर से थी इक घबराहट लेकिन बस उसकी थी चाहत गालों को पकड़े खींच रही और प्रेम से अपने सींच रही कभी नहीं छोडूंगी हर पल दूंगी साथ.. #अजय एहसास, अम्बेडकर नगर (उप्र)

होठ में सिहरन, पैर में कंपन
मानो आए उसके साजन
हाथों में हाथ वो दे कैसे
सिकुड़ी थी वो छुईमुई जैसे
इक शाल बदन पर थी लिपटी
वो भी थी बस उसमें सिमटी
आंखों से मन में लगी आग
उस शाल का उसने किया त्याग

मानों धरती पर दिखा चांद
वो रुका नहीं फिर उसके बाद
स्पर्श किया प्रेमी ने हाथ
प्रेयसी भी देने लगी साथ
थी भूल चुकी सारे नाते
कर रही थी प्यार की वो बातें
प्रेमी की आंखें देख ध्यान
धड़कन सुन रही लगा के कान

आंखों पर हाथ फिराई
बोली कर रही सफाई
वो नाक पकड़ के हिलाई
होठों को गोल बनाई
ढक कर अपने प्रेमी की आंख
उसके चेहरे को रही ताक
छुआ ज्यों ही प्रेमी के लब को
त्यों ही वो भूल गई सबको

दिल जोर से बोल रहा धक-धक
जैसे ही वो चूमी मस्तक
कर रही प्यार की कुछ बातें
बीते तुम बिन कैसे रातें
अंदर से थी इक घबराहट
लेकिन बस उसकी थी चाहत
गालों को पकड़े खींच रही
और प्रेम से अपने सींच रही
कभी नहीं छोडूंगी हर पल दूंगी साथ
तुम्हारा मन में खुशी लिए तुरत ही हो गया नौ दो ग्यारा

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