साहित्य लहर

प्रेयसी ने प्रथम मिलन को पुकारा “भाग 03”

प्रेमी ने गोद उठाया था प्रेयसी को पास बिठाया था सांसों से सांसें जब मिलती सूखे मन में कलियां खिलती इक नई ऊर्जा थी बहती मानो दिल की बातें कहती दस्तक दे गया ये नया साल मिलने के बाद क्या हुआ हाल नववर्ष का वो अद्भुत उपहार लुटा दिया सब उस पे प्यार अब कुछ भी अच्छा नहीं लगे हर जगह पे बस अब वही दिखे, ​#अजय एहसास, अम्बेडकर नगर (उप्र)

खोले बैठी घर के कपाट
देखे बस प्रेमी की ही बाट
उस क्षण प्रतिक्षण वो कली खिली
जब अपने भौरे से वो मिली
ना कुछ सोचे समझे पगली
बन फूल वो भौरे को ढक ली
भौरा भी उसमें सिमट गया
और अपने पुष्प से लिपट गया
कैसा था यह अद्भुत संयोग
दोनों को मिलने का था योग

कभी प्यार से थपकी दे कपोल
कर लेती थी होठों को गोल
आंखों में दिखता था वो प्यार
जिसका हुआ न था इजहार
कुछ तृप्त हुई मन की इच्छा
पूर्ण हुई वर्षों की प्रतीक्षा
सब कुछ पाकर सब छोड़ दिया
प्रेयसी दर्द ने मोड़ दिया
श्रृंगार न था चूड़ी कंगन
फिर भी सुंदरता मोहे मन
घंटो तक करते आलिंगन
इक दूजे पर वारे तन मन

प्रेमी ने गोद उठाया था
प्रेयसी को पास बिठाया था
सांसों से सांसें जब मिलती
सूखे मन में कलियां खिलती
इक नई ऊर्जा थी बहती
मानो दिल की बातें कहती
दस्तक दे गया ये नया साल
मिलने के बाद क्या हुआ हाल
नववर्ष का वो अद्भुत उपहार
लुटा दिया सब उस पे प्यार

अब कुछ भी अच्छा नहीं लगे
हर जगह पे बस अब वही दिखे
वो जाति धर्म को तोड़ गई
और प्यार का नाता जोड़ गई
उस गुड़िया का वो था नवाब
सब कुछ लगता था जैसे ख्वाब
चाहे जिस राह पे वो जाता
बस छवी उसी की ही पाता

‘एहसास’ करोगे जब उसको तड़पेगा हृदय तुम्हारा
पता नहीं इस जीवन में फिर होगा मिलन दुबारा
बोली मैं सदियों से तेरी जन्मों से तू है हमारा
मन में खुशी लिए तुरत ही हो गया नौ दो ग्यारा


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