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साहित्य लहर

कविता : गुरु महिमा

गुरु महिमा… बैर करो न आपस में तुम मिलकर रहना सिखाते हैं  सुपथ पर हमें चलाते  कुपथ से सदा बचाते हैं गुरु हमें जीना सिखाते हैं। एक साधारण बालक को सम्राट चंद्रगुप्त बनाते हैं ब्रह्मा-विष्णु और महेश  गुरुजन में समाते हैं  गुरु हमें जीना सिखाते हैं। #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर-प्रदेश

ज्ञान की बात बताते हैं
सदाचार का पाठ पढ़ाते हैं
अवगुणों को हमारे दूर कर
गुणवान बनाते हैं
गुरु हमें जीना सिखाते हैं।

अंतर्मन का तम हरने को
ज्ञान का दीप जलाते हैं
भले-बुरे का भेद बताकर
सही राह दिखाते हैं
गुरु हमें जीना सिखाते हैं।

बैर करो न आपस में तुम
मिलकर रहना सिखाते हैं
सुपथ पर हमें चलाते
कुपथ से सदा बचाते हैं
गुरु हमें जीना सिखाते हैं।

एक साधारण बालक को
सम्राट चंद्रगुप्त बनाते हैं
ब्रह्मा-विष्णु और महेश
गुरुजन में समाते हैं
गुरु हमें जीना सिखाते हैं।

कविता : बेटी


गुरु महिमा... बैर करो न आपस में तुम मिलकर रहना सिखाते हैं  सुपथ पर हमें चलाते  कुपथ से सदा बचाते हैं गुरु हमें जीना सिखाते हैं। एक साधारण बालक को सम्राट चंद्रगुप्त बनाते हैं ब्रह्मा-विष्णु और महेश  गुरुजन में समाते हैं  गुरु हमें जीना सिखाते हैं। #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर-प्रदेश

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