साहित्य लहर

प्रेयसी ने प्रथम मिलन को पुकारा “भाग 01”

तन उसका लगता इत्रदान, बातें उसने भी सब ली मान, मैं हूं बस तेरी तू ये जान, तू ही मेरा है मेरी जान, बाहों में भर कर आलिंगन, अभिलाषित हृदय का स्पंदन, आंखों को उसने बंद किये, मस्तक होठों से मंद छुए, होठों पर थी उसके सिहरन, मस्तक का चुंबन था कारन, खो डाली उसने खुद का होश, #अजय एहसास, अम्बेडकर नगर (उप्र)

पता नहीं कुछ वर्षों की या जन्मों का है सहारा
ना तेरा ना मेरा कहता, कहता सब है हमारा
उसे प्रेयसी ने जब प्रथम मिलन को पुकारा
मन में खुशी लिए तुरत ही हो गया नौ दो ग्यारा

मन में था डर,
क्या करता पर
यह ना सोचा क्या होगा तब
जान जाये जब सबके सब
दिल में थी बस एक ही आस
एक मिलन की बस थी प्यास
वो बन गई प्राणों की जान
देखा चेहरे पर मुस्कान

तन निर्मल लगता पावन
इस ठंड दिसंबर में सावन
वो सुंदरता की थी मूरत
परियों सी थी उसकी सूरत
देखा जो उसकी आंखों में
कई फूल खिले थे शाखों में
आंखों में देखा ताक झांक
वो भूल गया खुद को ही आप

तन उसका लगता इत्रदान
बातें उसने भी सब ली मान
मैं हूं बस तेरी तू ये जान
तू ही मेरा है मेरी जान
बाहों में भर कर आलिंगन
अभिलाषित हृदय का स्पंदन
आंखों को उसने बंद किये
मस्तक होठों से मंद छुए

होठों पर थी उसके सिहरन
मस्तक का चुंबन था कारन
खो डाली उसने खुद का होश
भर ली कसकर उसको आगोश
कुछ देर वो ऐसे जुड़ी रही
खो होश वो ऐसे पड़ी रही
बस कुछ क्षण का वो प्रथम मिलन
उम्मीद की थी इक नई किरन

पकड़ कपोलों को प्रेयसी ने उसका सिर झकझोरा
मन में खुशी लिए तुरत ही हो गया नौ दो ग्यारा

⇒ आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें ⇐


Advertisement… 


Advertisement… 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights