लघुकथा : मंत्रीजी का पावर
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
वो सब्जी के ठेले को धक्का मारता हुआ मुख्य सड़क से चौराहे पर पहुंचा ही था कि पीछे से उसकी पीठ पर एक जोरदार डंडा पुलिस के सिपाही ने मार दिया ।
‘मेरा क्या कसूर माई- बाप ।’ वो एक हाथ से अपनी पीठ सहलाता हुआ बोला ।
‘सारा शहर बंद है मंत्री जी के शोक में, और तू साला दुकान लिए घूम रहा है ।’ सिपाही आंखें दिखाते हुए बोला ।
‘मुझे इस खबर की कोई जानकारी नहीं थी, मैं… मैं ! वापिस घर जाता हूं ।’ वो गिड़गिड़ाया ।
उसने सब्जी का ठेला घर की ओर मोड़ दिया । वो रास्तेभर सोचता रहा… तीन महीने पहले मंत्रीजी रैली निकाले थे, तब भी ऐसे ही सड़क किनारे पुलिस ने उसे मारा और आज ससुरा निपट गया तब भी पुलिस पीट रही है ।
भई मंत्री जी तो मरने के बाद भी पावर में रहते हैं । उन्हें क्या फर्क पड़ता है जीने -मरने से ।
वह अकेला बुदबुदाता हुआ घर पहुंच गया ।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »मुकेश कुमार ऋषि वर्मालेखक एवं कविAddress »ग्राम रिहावली, डाकघर तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, (उत्तर प्रदेश) मो.: 9876777233Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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