साहित्य लहर

कविता : गंगा मां

कविता : गंगा मां… पाप नाशनी जीवन दायिनी नव जीवन सबको देती है, गंगा को स्वच्छ पवित्र रखें संकल्प सभी हम लेते हैं। शंकर जी के जटा से निकलीं वेद-पुराणों में वर्णित है, भागीरथ लाएं धरती पर गंगा जी के जल में अमृत है। #डा उषाकिरण श्रीवास्तव, मुजफ्फरपुर

गंगा मां की पावन धारा
कल-कल, कल-कल करती हैं,
सब जीवों की प्यास बुझाती
सबके पापों को हर लेती है।

गो मुख से चलकर गंगा मां
गंगोत्री होकर आगे बढ़ती,
हरिद्वार में आकर गंगा मां
पावन धरा को छू लेती है।

पाप नाशनी जीवन दायिनी
नव जीवन सबको देती है,
गंगा को स्वच्छ पवित्र रखें
संकल्प सभी हम लेते हैं।

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शंकर जी के जटा से निकलीं
वेद-पुराणों में वर्णित है,
भागीरथ लाएं धरती पर
गंगा जी के जल में अमृत है।


कविता : गंगा मां... पाप नाशनी जीवन दायिनी नव जीवन सबको देती है, गंगा को स्वच्छ पवित्र रखें संकल्प सभी हम लेते हैं। शंकर जी के जटा से निकलीं वेद-पुराणों में वर्णित है, भागीरथ लाएं धरती पर गंगा जी के जल में अमृत है। #डा उषाकिरण श्रीवास्तव, मुजफ्फरपुर

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