साहित्य लहर
कविता : सावन
कविता : सावन… जानी अनजानी इन सारी बातों को सोचती शाम के धुंधलके में बाहर कहीं आकर ठहरती हवा अंधेरे में दीया जलाती जो इस कदरअकेला छोड़ कर चले गए उनकी याद तुम्हें अक्सर सावन की तरह रुलाती #राजीव कुमार झा
शाश्वत जीवन का
हार
यह पलभर का प्यार
समुद्र के पास नदी की
बेहद शिथिल बहती
धार में तैरता रहता
अरी प्रिया!
सबके मन का ज्वार
समंदर आठ पहर
अठखेलियां करता
सुबह सूरज रात को
भूल जाने के लिए
सबको कहा करता
गगन में प्यार बनकर
चांद आकाश को
तुम्हारी मुस्कान से
अब रोज भरा करता
जिंदगी को कितना
तुम प्यार हरवक्त
करती रहती
जानी अनजानी
इन सारी बातों को
सोचती
शाम के धुंधलके में
बाहर कहीं आकर
ठहरती
हवा अंधेरे में दीया
जलाती
जो इस कदर अकेला
छोड़ कर चले गए
उनकी याद तुम्हें
अक्सर
सावन की तरह रुलाती