कविता : यू ट्यूब लाइव
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कविता : यू ट्यूब लाइव… हम सब कुएं के मेढ़क बन जाते पेड़ की छाया में आकर हम अपना घर फिर हम कभी बसाते प्यार की गलियों में आकर कोई गाना गाते नदी किनारे सुबह नहाने जाते बाजार से मीठे आम… #राजीव कुमार झा
यू ट्यूब लाइव में
सारे लोग तुम्हारी
खूबसूरती देखकर
कहते
अरी यार!
तुम्हारी प्यार की
कविताएं
कभी बाद में सुनते
अभी तो अपलक
तुम्हें सभी
अपनी नजरें फेरकर
देखते रहते
फिर तुम्हारी
कविताएं सुनकर
सब खूब हंसते
तुम्हारे प्यार के संग
हास्य का सहज
सरस भाव
याद आता हो
मानो सपनों का गांव
हरियाली में डूबा
गर्मी के मौसम में
महक रहा हो
प्यार का खरबूजा
शाम की बारिश में
बादल को कहीं शरारत
सूझा
बहुत पुराने कुएं के
भीतर
कोई मेढ़क
पानी में डूबा कूदा
सबने उससे पूछा
सबने एक दूसरे से
फिर पूछा
किसने धरती पर
उसके जीवन के
सपनों को लुटा
गर्मी के मौसम में
हम सब कुएं के
मेढ़क बन जाते
पेड़ की छाया में
आकर
हम अपना घर
फिर हम कभी
बसाते
प्यार की गलियों में
आकर
कोई गाना गाते
नदी किनारे सुबह
नहाने जाते
बाजार से मीठे आम
खरीदकर लाते
यू ट्यूब लाइव में
आकर
सबको कविताएं
रोज सुनाते
कभी दिल्ली घूमकर
आते