साहित्य लहर
कविता : मानवता
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कविता : मानवता, सुख-सुविधाओं के पीछे दिन-रात मानव दौड़ रहा सदाचार और मानवता को दिन-ब-दिन भूल रहा। गैरों के दुःख-दर्द से मानव आज हो कितना दूर रहा आधुनिक इस परिवेश में… #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश
भौतिकता की अंधी दौड़ में
देखो, मानव कैसे दौड़ रहा
गला काट प्रतिस्पर्धा में
मानवता को भूल रहा।
निज स्वार्थ में लीन मानव
लोकमंगल की कामना भूल रहा
लोभ-वासना के चक्कर में
मानवता को भूल रहा।
सुख-सुविधाओं के पीछे
दिन-रात मानव दौड़ रहा
सदाचार और मानवता को
दिन-ब-दिन भूल रहा।
गैरों के दुःख-दर्द से मानव
आज हो कितना दूर रहा
आधुनिक इस परिवेश में
मानवता को भूल रहा।