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साहित्य लहर

कविता : आनंद

मेरी बाहुओं में फौलाद उमगता, काफी विश्वास से तुमको मैंने अब बेफिक्र कर दिया, इस मुलाकात के बाद सुकून से रहो तुम, मुझे पुकारती किसी दिन फुर्सत के पलों में अपने मन की बातें बताती… #राजीव कुमार झा

मेरे प्यार को
आज के बाद
सारी उम्र में पाना
किसी दिन करीब
आना
इस उम्र में भीतर
कुछ मौसम की तरह
अगर बदल गया हो

मन बरसात में
नदी के किनारे
पिघल रहा हो
जिंदगी की खुशियां
समेट लेना
यार मेरे प्यार को
अलविदा
तुम कभी नहीं कहना

नई जिंदगी का
आशियाना
प्यार की बांहों में
नजरें मिलना
तुम्हें हमने आनंद से
पुलकित कर दिया

तुम अब एक नदी का
उद्गम बन जाओ
बेहद मुश्किल होता
तुम्हें सम्हालना
आनंद के अतिरेक में
प्यार की गोद में
तुम्हारा भार
शून्य के बराबर लगता

मेरी बाहुओं में
फौलाद उमगता
काफी विश्वास से
तुमको मैंने अब
बेफिक्र कर दिया
इस मुलाकात के बाद
सुकून से रहो
तुम मुझे पुकारती

किसी दिन फुर्सत के
पलों में अपने मन की
बातें बताती
तुमसे किसी वक्त
बेहद एकांत में
मिलने की बेताबी से
घिरा यह मन
रोज राहें निहारता
रहता


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