कविता : साईकिल
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बारी बारी से साईकिल चलाते इससे बच्चों की शारीरिक कसरत हो जाती और वे सदैव स्वस्थ और मस्त रहते लेकिन जब से साईकिल छोडी हैं तब से सभी रोगी होने लगे हैं शारीरिक श्रम छूटा और शारीरिक कसरत भी अब भला तुम ही बताओ कि…. #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
साईकिल बोली, वो भी क्या दिन थे
जब बच्चें मुझे चलाने के लिए
आपस में लडा करते थे कि
पहले मैं चलाऊं, पहले मैं चलाऊं
कोई मेरे चक्के में हवा भरता था तो
कोई बिना वजह मुझ पर लगी घंटी बजाता
कोई तेज चलाता तो कोई डरता डरता चलाता
कोई अपने साथी को आगे बैठाकर तो
कोई अपने साथी को पीछे बैठाकर
बारी बारी से साईकिल चलाते
इससे बच्चों की शारीरिक कसरत हो जाती
और
वे सदैव स्वस्थ और मस्त रहते
लेकिन
जब से साईकिल छोडी हैं तब से
सभी रोगी होने लगे हैं
शारीरिक श्रम छूटा और शारीरिक कसरत भी
अब भला तुम ही बताओ कि
कैसे होंगे हम सब स्वस्थ, अब भी वक्त हैं
साईकिल अपनाओं और
अपना स्वास्थ्य बनाओं
Nice poem