साहित्य लहर

संग तेरे मुस्कुराऊंगा

प्रेम बजाज

तुमको गले लगाऊंगा,
संग तेरे मुसकुराऊंगा,
इक बार चली आ तु
छोड़ के ये सारा जहां,
तुझको मैं अपनाऊंगा,
तेरे लिए इस जहां से लड़ जाउंगा,
ना आने दूंगा कभी तुझ पर दुःख की छाया,
तेरे लिए मौत से भी लड जाऊंगा।

तेरे होंठ गुनगुनाए जिसे हर पल,
मैं वो गीत बन जाऊंगा,
कभी बनूंगा राग तेरे होठों का,
कभी तिल गालों का बन इतराऊंगा।

बहते हैं जो अश्क तुम्हारी ऑंखों से,
उनको अपने होंठों से पी जाऊंगा,
दे कर के फूल तुम्हें अपनी जीवन बगिया के,
कांटे तुम्हारे दामन से चुन जाऊंगा,
बन कर हंसी तुम्हारे लबों की,
तुम्हारे नैनों में मुसकुराऊंगा।

सज कर के तेरे बदन की डाली पर,
श्रृंगार मैं तुम्हारा बन जाऊंगा,
नज़र उतारे जो तुम्हारी,
मैं वो काला धागा भी बन जाऊंगा,

तुम बन जाना गज़ल मेरी,
मैं तुम्हें हर पल गुनगुनाऊंगा,
छोड़ सारा जहां मै,
बस तुम संग मुस्कुराऊंगा।

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