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साहित्य लहर

बधाई

गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम
तेरे जीत पर
तेरे जात पर
तेरे धर्म पर
तेरे जज़्बात पर
तुझे बधाई दूं
मैं किस बात पर।
तुम पढ़ लिख रहे थे
मैं मौज उड़ा रहा था।
तुम सफल हो गए
मैं अटका रहा जात पर
तुझे बधाई दूं
मैं किस बात पर।
तेरे सफलता की
कहानी पीछे छूट गई
चारों ओर चर्चा रहा है
सिर्फ तेरे जात पर।
तुझे बधाई दूं
मैं किस बात पर
कितने रात जागे
कहां कहां भागे
कितने दिन कटे
तेरे चोखा भात पर।
तुझे बधाई दूं
मैं किस बात पर।
किताब पढ़े
पत्र पत्रिका चाटे
भर दिन दौड़ते रहे
कोचिंग के घाट पर।
तुझे बधाई दूं
मैं किस बात पर।
फेल पर फेल होते रहे
छुप छुप कर रोते रहे
पर किसको विश्वास है
तेरे जज़्बात पर
तुझे बधाई दूं
मैं किस बात पर।
गांव से शहर भागे
ताकि निकल सकें आगे
घर परिवार से दूर रहे
पर कोई चर्चा नहीं त्याग पर
तुझे बधाई दूं
मैं किस बात पर।

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