साहित्य लहर

कविता : मम्मी का हलवा

कविता : मम्मी का हलवा, मैं कहता हर रोज बनाना, ऐसा हलवा मुझे खिलाना, मम्मी तुम कितनी प्यारी हो, ऐसे ही हर रोज खिलाना।। ताकतवर मैं बन जाऊंगा, सभी काम में कर पाऊंगा, बदमाशों से नहीं डरूंगा, उनको मार भगाऊंगा।। कविता नन्दिनी, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)

मम्मी मेरी झटपट आती
हलवा मेरे लिए बनाती
गरम-गरम हलवा ठंडा कर
अपने हाथो मुझे खिलाती।।

जब हलवा बनता है घर में
उसकी खुशबू है ललचाती
हलवा खाने की लालच में
बेचैनी है बढ़- बढ़ जाती।।

मैं कहता हर रोज बनाना
ऐसा हलवा मुझे खिलाना
मम्मी तुम कितनी प्यारी हो
ऐसे ही हर रोज खिलाना।।

ताकतवर मैं बन जाऊंगा
सभी काम में कर पाऊंगा
बदमाशों से नहीं डरूंगा
उनको मार भगाऊंगा।।


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कविता : मम्मी का हलवा, मैं कहता हर रोज बनाना, ऐसा हलवा मुझे खिलाना, मम्मी तुम कितनी प्यारी हो, ऐसे ही हर रोज खिलाना।। ताकतवर मैं बन जाऊंगा, सभी काम में कर पाऊंगा, बदमाशों से नहीं डरूंगा, उनको मार भगाऊंगा।। कविता नन्दिनी, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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