साहित्य लहर

कविता : बताओ न…?

सिद्धार्थ गोरखपुरी

न द्वापर में हुए न कलयुग में हुए
बताओ न? राधा के तुम किस युग में हुए

विरह की वेदना देकर
चले गए मुँह मोड़कर
भला कोई ऐसे भी जाता है?
बीच रास्ते में छोड़कर
ये हादसे तो आखिर तुम्हारी सुधबुध में हुए
बताओं न? राधा के तुम किस युग में हुए

जान से बढ़कर राधा ने
बस तुमको चाहा था
उसने जो प्रीत किया
वो ताउम्र निबाहा था
तो क्यों नहीं राधा के तुम जद में हुए
बताओं न? राधा के तुम किस युग में हुए

राधा की पैरवी सबने की है
आखिर में फैसला तुम्हारा है
गलतियां सुधर जातीं हैं अक्सर
कोई किसी का हो जाता दुबारा है
आखिर ऐसे फैसले किस जद्दोजहद में हुए
बताओं न? राधा के तुम किस युग में हुए

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