उत्तर प्रदेश

Online Gaming : खतरे की ओर जाता बच्चों का भविष्य

Online Gaming : खतरे की ओर जाता बच्चों का भविष्य, ऑनलाइन गेमिंग के इस नेटवर्क का अंदाजा इसी से आसानी से लगाया जा सकता है कि एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में 900 गेमिंग कंपनियां कार्य कर रही हैं। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

देश दुनिया में ऑनलाइन गेमिंग का बाजार दिन दूनी रात चौगुनी गति से फलता फूलता जा रहा है। कोविड के बाद के हालातों खासतौर से ऑनलाइन स्टडी और वर्क फ्राम होम का एक दुष्प्रभाव यह सामने आया है कि युवा तो युवा बच्चे भी इसके जाल में फंसते जा रहे हैं। इसके दुष्प्रभाव भी तेजी से सामने आने लगे हैं वहीं यह माना जा रहा है कि आने वाले सालों में इसके कारोबार में और तेजी से बढ़ोतरी होगी। ऑनलाईन गेमिंग में लोग ठगी के शिकार भी बहुत ज्यादा हो रहे हैं। ऐसे में यह गंभीर चिंता का विषय हो जाता है।

लाख प्रयासों के बावजूद देश में ऑनलाइन गेमिंग का बाजार थमना तो दूर की बात है बल्कि तीव्र गति से बढ़ता ही जा रहा है। पिछले एक साल में ही ऑनलाइन गेमिंग के मैदान में पांच करोड़ नए लोगों ने एंट्री ले ली है। 2021 में देश में ऑनलाइन गेम खेलने वालों की संख्या करीब 45 करोड़ थी जो 2022 में बढ़कर 50 करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है। यह अपने आप में चिंतनीय इसलिए भी हो जाता है क्योंकि युवा और क्या बच्चे इस ऑनलाइन गेम और गैम्बलिंग के जाल में फंसते जा रहे हैं।

जानकारों की मानें तो कयास यह लगाया जा रहा है कि 2025 तक यह संख्या 50 करोड़ से 70 करोड़ तक पहुंच जाएगी। तस्वीर का नकारात्मक पहलू यह भी है कि ऑनलाइन गेमिंग के इस खेल में बच्चे तेजी से फंसते जा रहे हैं। ऑनलाइन गेमिंग व गैम्बलिंग के दुष्प्रभाव को जानते पहचानते भी प्रतिदिन नए लोग फंसते जा रहे हैं वहीं समाचारपत्रों के मुखपृष्ठ पर फुलपेज के विज्ञापन प्रमुखता से छपने लगे हैं तो सोशल मीडिया का भी इसको प्रमोट करने के लिए धड्डले से उपयोग हो रहा है।

Online Gaming : खतरे की ओर जाता बच्चों का भविष्य, ऑनलाइन गेमिंग के इस नेटवर्क का अंदाजा इसी से आसानी से लगाया जा सकता है कि एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में 900 गेमिंग कंपनियां कार्य कर रही हैं। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

2016 में देश में ऑनलाइन गेमिंग का 54 करोड़ डॉलर का कारोबार था जो अब बढ़कर 2022 में 2 अरब 60 करोड़ डालर को पार कर गया हैं वहीं जानकारों की मानें तो इसके 2027 तक चार गुणा ग्रोथ के साथ 8 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना जताई जा रही है। दरअसल कोरोना के लॉकडाउन के दौर के बाद इसमें तेजी से विस्तार हुआ है। बच्चे जहां ऑनलाइन क्लासों के कारण इसकी चपेट में आ गए वहीं युवा लोग वर्क फ्रार्म होम के दौरान लुभावने विज्ञापनों के चक्कर में इसकी चपेट में आ गए हैं।

देखा जाए तो उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोग इसके दायरे में अधिक हैं। दरअसल ऑनलाइन गेम एप संचलित करने वालों का दावा है कि वे तो कौशल विकास के लिए इस तरह के गेम चलाते हैं पर वास्तविकता तो यह है कि अधिकांश गेमिंग पोर्टल गैम्बलिंग यानी की जुआ ही हैं। और यह होती आई बात है कि एक बार जो जुआ या यों कहें कि गैम्बलिंग के चक्रव्यूह में फंस जाता है तो उससे निकलना बहुत मुश्किल भरा काम है।



धिकांश खेलों में जीतने वाले को जो पैसा दिया जाने का दावा किया जाता है वह नहीं मिलता और या तो कोई तकनीकी बाधा हो जाती है या फिर नंबर ब्लाक कर इस तरह के पोर्टल संचालित करने वाले पैसा हजम कर जाते हैं और इस तरह की गेमिंग में फंसने वाला अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है। यहां तक कि इसके चक्कर में युवा, बच्चे आदि अपनी बचत को तो खोते ही हैं साथ ही अनेक लोग कर्ज के जाल में और फंस जाते हैं। डिप्रेशन में आना और कुंठित व तनावग्रस्त होना तो सामान्य बात ही है। यही कारण है कि अधिकांश राज्य सरकारें ऑनलाइन गेमिंग पर रोक लगाने की पक्षधर हैं।



Online Gaming : खतरे की ओर जाता बच्चों का भविष्य, ऑनलाइन गेमिंग के इस नेटवर्क का अंदाजा इसी से आसानी से लगाया जा सकता है कि एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में 900 गेमिंग कंपनियां कार्य कर रही हैं। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा



ऑनलाइन गेमिंग के इस नेटवर्क का अंदाजा इसी से आसानी से लगाया जा सकता है कि एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में 900 गेमिंग कंपनियां कार्य कर रही हैं। नित नए गेम बनाकर उतार रही हैं। अकेले 2022 में ही 15 अरब नए गेम डाउनलोड किए गए। इससे स्वाभाविक रूप से अंदाज लगाया जा सकता है कि ऑनलाइन गेमिंग का कारोबार कितना बड़ा और दिन दूनी रात चौगुनी गति से विस्तारित हो रहा है। ऑनलाइन गेमिंग के जाल में फंसे लोगों से इसका चस्का छूटना मुश्किल भरा काम है। इससे जुड़े लोग 24 घंटे में से 8 घंटे से भी अधिक का समय इस गेमिंग में खपा देते हैं। यह अपने आप में बड़ी बात है।



आश्चर्य है कि इतना सबकुछ होने के बाद भी इस पर प्रभावी रोक के कोई सार्थक प्रयास नहीं हो रहे हैं। हालांकि तथाकथित कौशल वाले इन खेलों पर सरकार ने 18 प्रतिशत जीएसटी लगा रखी है। पर यह कोई समस्या का समाधान नहीं है। हालांकि सरकारों की इच्छाशक्ति पर बहुत कुछ निर्भर करता है। यही कोई तीन दशक पहले कई राज्य सरकारों द्वारा लॉटरी चलाई जा रही थी। जो आते आते एक नंबर पर आ गई और इसका नेटवर्क इस कदर फैला हुआ था कि सरकारी दफ्तरों के बाहर तक टेबल कुर्सी पर सुबह से टिकटों की बिक्री शुरू होती थी जो दिन में लॉटरी खुलने तक जारी रहती थी।



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लोगों की भीड़ जुटी रहती थी। पर जब अति होने लगी, समाज बुरी तरह से प्रभावित होने लगा तो सरकार ने एक ही झटके में समूचे देश से लॉटरी व्यवस्था समाप्त कर दी और इसके सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हुए। इसी तरह से केन्द्र व राज्य सरकारों को ऑनलाइन गेमिंग व्यवस्था पर अंकुश लगाने के ठोस प्रयास करने होंगे। कम से कम इस तरह की कंपनियों द्वारा की जा रही चीटिंग व लोगों को सब्जबाग दिखा कर लुभाने के प्रयासों को प्रतिबंधित करना ही होगा।



अब सरकारों के सामने ऑनलाइन गेमिंग एक चुनौती के रूप में उभर रहा है। सबसे पहले तो सरकार को इन पर शिकंजा कसने के लिए कोई ना कोई नियामक बनाना होगा। खासतौर से इस तरह के नियामक कानून बनाने होंगे जिससे बच्चे इस चंगुल में नहीं फंस सकें और इसे नियंत्रित किया जा सके। इन कंपनियों की गतिविधियों पर नजर रखने और उसके लिए नियामक संस्था बनाने के कदम उठाये जाने चाहिए। सरकार को इसके लिए समय रहते कदम उठाने होंगे। सरकारी राजस्व का मोह त्याग कर व्यापक हित में ठोस कदम उठाना होगा ताकि आधुनिक जुआ यानी कि कौशल विकास के नाम पर चल रहे गेमिंग के इस गैम्बलिंग के खेल से नई पीढ़ी को बचाया जा सके।

साभार: प्रभासाक्षी, हिन्दी न्यूज पोर्टल

कविता : अखबार


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फॉरेवर स्टार बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में प्रकाशित हुए राजीव डोगरा

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