प्रयासों की कुंजी है सफलताओं की निशानी
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सुनील कुमार माथुर
आज हम व्यर्थ ही अपने अंहकार में मरे जा रहें है । अगर अनुभवी व्यक्ति को उसके श्रम व योग्यता के अनुरूप वेतन और सुविधाएं दी जाये तो देश की स्थिति ही बदल जायेंगी और यह देश पुनः सोने की चिडियां कहलाने लग जायेगा । भक्ति का मार्ग आसान तभी होगा जब व्यक्ति भक्ति करना शुरू कर दे । कार्य करेगे तभी तो मार्ग आसान होगा । बिना प्रयासों के कैसे आसान होगा । अतः हर कार्य के लिए सतत् प्रयास करें तभी उसमें सफलता मिलेगी । अगर हम प्रयास ही नहीं करें तो क्या खाक सफलता मिलेगी ।
केवल यह कह देना कि अमुक कार्य करने में मन नहीं लगता है तो यह आपका झूठा अंहकार ही हैं । हर बात को पहले सुने – समझें फिर उस पर चिन्तन मनन करे और फिर अपनी राय दे । बिना सुने – समझें और चिन्तन मनन किये अपनी राय देना मूर्खता ही कहीं जायेगी । हर व्यक्ति में ज्ञान का अथाह भंडार है बस उसे कब , कहां व कैसे प्रकट करना हैं यह कला आनी चाहिए । जिसने इस कला को सीख लिया वही तो ज्ञानी हैं ।
ज्ञान ग्रहण करने का कोई भी वक्त और उम्र नहीं होती हैं अपितु जब भी वक्त मिले तब ज्ञान ग्रहण कर ले । ज्ञान की बात सीखने के लिए उम्र का क्या लेना देना । जो भी बात सही व अच्छी लगे ग्रहण कर लीजिये । आप किसी कार्य के लिए किसी पर विश्वास करके तो देखिए । बस मन में कभी भी छल कपट का भाव नहीं होना चाहिए । मन सदैव प्रसन्नचित्त रहना चाहिए । कहा भी जाता है कि मन चंगा तो कटोरी में भी गंगा । अगर हम ईर्ष्या , जलन , नफरत का भाव रखेंगे तो जीवन में कभी भी तरक्की नहीं कर सकते । ईर्ष्या से तो व्यक्ति का सर्वनाश ही होता हैं । अतः ईर्ष्या , नफरत , जलन , घृणा, द्वेष की भावना से सदैव दूर रहें ।
जहां प्रेम है वहां ईर्ष्या का कोई स्थान नहीं है । मनुष्य को अपना मन ईश्वर की भक्ति में अवश्य लगाना चाहिए । ईश्वर की भक्ति से ही कल्याण सम्भव है । प्रेम ही ईश्वर है । इसी लिए सभी को प्रेम से रहना चाहिए । जो भी भक्त भगवान को प्रेम से व श्रद्धा से याद करता है प्रभु उसकी पुकार अवश्य ही सुनते है । जैसे रिमोट से हम फटाफट चैनल बदल देते है ठीक उसी प्रकार प्रभु न जाने कब हमारी किस्मत बदल दे । अतः हमें प्रभु का निरन्तर व सदैव स्मरण करना चाहिए । मनुष्य जैसा आता है वैसा ही वापस जाता है मात्र उसके सद्कर्म ही उसके साथ जाते है ।
जो सुख भक्त बनने में हैं वह सुख भगवान बनने में नहीं है । अतः कभी भी भगवान बनने का प्रयास नहीं करें । चूंकि प्रभु तो भक्तों के अधीन हैं । आज मानव धन के पीछे अंधा होकर दौड रहा हैं और रातों रात वह करोड़पति बनना चाहता है । इसके लिए वह गलत रास्ते अपना रहा है । किसी कि भी बात सुनने को वह तैयार नहीं है । वो यही सोचता है कि वह जो कुछ भी कर रहा है वह ठीक है । वह गलत रास्ते अपना कर घर, परिवार, समाज व राष्ट्र में अपनी प्रतिष्ठा खराब कर रहा है ।
आज व्यक्ति समाज में लोक दिखावा कर अपने को समाज में प्रतिष्ठित करना चाहता है । वह गलत तरीके से कमाये गये धन में से कुछ धन दान पुण्य में खर्च कर अपने को धन्य समझता है । लेकिन ऐसा दान पुण्य कोई मायने नहीं रखता । जो धन लोगों को ठगकर, लूट कर धोखा देकर कमाया गया है अथवा अन्य गलत रास्ता अपना कर कमाया गया है । भगवान उस धन से चढावा स्वीकार नहीं करतें है धन वही उत्तम है जो अपनी मेहनत, ईमानदारी व निष्ठा के साथ कमाया गया है । ऐसे कमाये गये धन में से दान पुण्य करना श्रेष्ठ माना गया है ।
मानव का चरित्र श्रेष्ठ है तो सब कुछ श्रेष्ठ है । अगर चरित्र ही खराब हो तो सब कुछ खराब माना जाता है । गया चरित्र वापस नहीं आता है । जब कि चोरी , डकैती, जुआ , शराबखोरी, गलत रास्ते में बर्बाद हुआ धन पुनः मेहनत करके कमाया जा सकता है और अगर हमनें चरित्र खो दिया तो समझो सब कुछ खो दिया है । अतः इंसान को पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ कार्य करना चाहिए व उसे ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे उसकी प्रतिष्ठा पर दाग लगें ।
इंसान को अपना जीवन प्रभु की सेवा में लगाना चाहिए और प्रभु की सेवा सबसे बडी सेवा है । आज लोग कहते है कि प्रभु का नाम लेने का समय ही नहीं मिलता है वे लोग झूठ बोलते है । परमात्मा का नाम तो हम कहीं भी उठते, बैठते , चलते फिरते व आराम करते हुए ले सकते हैं । अगर हमारे मन में प्रभु के प्रति सच्ची श्रद्धा है तो माला फेरने की जरूरत नहीं है वरन मन में राम राम जपना और राम राम बोलना ही काफी हैं । अगर हम राम के अलावा किसी अन्य देवी देवताओं में आस्था रखते हैं तो उनका स्मरण कर सकते हैं । बेकार की गपशप में समय बर्बाद करने के बजाय ईश्वर के नाम का स्मरण करने में जो आनन्द मिलता है वह किसी और कार्य करने में नहीं मिलता है ।
प्रभु का स्मरण ही हमारे अन्त समय में काम आयेगा जब जब हमारे पर विपत्ति आती है तो उस वक्त हम परमात्मा को याद करते हैं और वही हमारे दुखों का निवारण करते हैं तो फिर सुख में प्रभु के नाम का स्मरण क्यों नहीं करते । प्रभु के नाम का स्मरण करने से मन को अपार शान्ति मिलती है ।
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