फीचरसाहित्य लहर

मेरे कविता लेखन को प्रेम, उम्मीद और पलायन के प्रसंगों ने प्रेरित किया…

साक्षात्कार : कवयित्री सुशीला सिंह राजपूत से राजीव कुमार झा की बातचीत

काश्तकला, वस्त्र कौशल, आभूषण कला, ऊनी वस्त्रों को बनाने की कला, मूर्तिकला स्थापत्य कला बेजोड़ है। उत्तराखंड की लोकप्रियता पवित्र हिंदू धर्म के धार्मिक स्थलों चार धाम के कारण भी है, इसीलिए उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड की वेशभूषा यहां की भौगोलिक परस्थितियों के अनुकूल है।

मेरा जन्म 25 दिसंबर को 1962 को उत्तराखंड राज्य के पौड़ी जिले में हुआ। मेरे पिता स्वर्गीय श्री पृथ्वी सिंह, बिजनेसमैन थे, माता श्रीमती सोना देवी एक गृहणी हैं। मेरे पति श्री बृजपाल ऑर्डिनेंस फैक्ट्री से राजपत्रित अधिकारी रिटायर्ड हैं। मैं दिवंगत श्री हीरालाल सिंह व श्रीमती श्यामा देवी की पुत्रवधू हूं। पौड़ी की सुरम्य वादियों में मेरा बचपन बीता। नि:संदेह प्रकृति ने मुझे भी वो सब दिया,जो हमारे लिए सर्वोत्तम है।

गढ़वाल विश्वविद्यालय के संघटक महाविद्यालय पौड़ी से एम. ए. अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूर्ण की। शिक्षा :स्नातक की डिग्री गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल से प्राप्त की।1985 अक्टूबर से एक अध्यापिका के रूप में अध्यापन कार्य आरंभ किया। कविताएं और अन्य रचनाएं पत्र पत्रिकाओं, समाचारपत्रों में प्रकाशित। आगामी दिनों में मेरी लघुकथाओं का संग्रह, अन्य रचनाएं, काव्य संकलन प्रकाशित होने के लिए तैयार हैं। मैं समाज की वे बालिकाएं जो आर्थिक तंगी के कारण योग्यता रखते हुए भी उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाती हैं, उनके लिए प्रयासरत हूं।

प्रश्न: कविता लेखन करते हुए समाज की किन बातों से कवि की चेतना प्रभावित होती है?

उत्तर: किसी भी समाज के सदियों पुराने शास्त्र, कर्मकांड, समाज की जीवन शैली, रीति रिवाज, कला, विश्वास अन्धविश्वास वह सबकुछ उस समाज विशेष की संस्कृति का अंग है जिसका पालन उस समाज में रहने वाले मनुष्य करते हैं। कवि के कविता लेखन पर इसका अनिवार्य प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न: आप उत्तराखंड की कवयित्री हैं यहां के सांस्कृतिक विरासत के बारे में बताएं।

उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत का कुछ शब्दों में वर्णन करना कठिन होगा। सांस्कृतिक दृष्टि से उत्तराखंड बहुत ही समृद्ध है यहां के पर्वतीय भूभाग आज भी अपनी पुरानी संस्कृति रीति रिवाजों को क़ायम् रखे हुए हैं। लोककला पर आधारित पर्व, त्योहार यहां उल्लास पूर्वक मनाये जाते हैं जैसे बसंत पंचमी, फूलदेही, घुघतिया,भिटोली आदि। उत्तराखंड अपनी खूबसूरत गढ़वाली, कुमाऊनी संस्कृति के लिए जाना जाता है।



विभिन्न परंपराएं, त्योहार, लोकनृत्य उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत के रूप में विद्यमान है।उत्तराखंड का लोक संगीत हिमालय की तलहटी में स्थित कुमाऊं, गढ़वाल क्षेत्रों के पारम्परिक समकालीन गीतों को संदर्भित करता है यह का संगीत प्रकृति की जड़ों से जुड़ा है यहां के लोकगीत यहां की सांस्कृतिक विरासत और हिमालय में लोगों के जीवन जीने के तरीकों को प्रतिबिंबित करता है यहां की कलाएं जन सामान्य के ह्रदय की भावनाओं द्वारा लोककला के रूप में होकर हमारे जीवनोपार्जन में सहयोग देती हैं।



काश्तकला, वस्त्र कौशल, आभूषण कला, ऊनी वस्त्रों को बनाने की कला, मूर्तिकला स्थापत्य कला बेजोड़ है। उत्तराखंड की लोकप्रियता पवित्र हिंदू धर्म के धार्मिक स्थलों चार धाम के कारण भी है, इसीलिए उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड की वेशभूषा यहां की भौगोलिक परस्थितियों के अनुकूल है। यहां के व्यंजन देश विदेश में अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं। बहुत ही पौष्टिक, स्वादिष्ट व्यंजनों की विविधता यहां देखने को मिलती है जब भी कभी आप उत्तराखंड आएं तो स्थानीय रेस्तरां में काफली, झंगोरे की खीर, मंडवे की रोटी, भांग की चटनी जैसे व्यंजनों का लुफ़्त अवश्य उठाएं।



प्रश्न : कविता समाज को क्या संदेश देती है?

उत्तर : कविता समाज की पक्षधरता के मूल स्वर के साथ साथ जीवन के सभी रंगों को उकेरती है। वेदना, निराशा, टूटे सपने, खंडित हुई आशाएं कविता के माध्यम से जीवन सत्य के रूप में स्वीकारित होती है, जीवन के इसी सत्य को लिखने का सूक्ष्म प्रयास मैंने भी किया है। प्रेम,उम्मीद, पलायन (उत्तराखंड की ज्वलंत समस्या) ने लिखने को प्रेरित किया। साथ ही नारी जीवन की कटु सच्चाइयों के भीतर अर्थ और स्वतत्व को पाने का प्रयास करना चाहा है । उसके जीवन के अभाव, निराशा, अवहेलना, प्रताड़ना, निरंतर क्षरित होते जीवन सत्य लिखने के लिए उन्मुख होती रही हूं।



प्रश्न :कविता लेखन की शुरुआत कब हुई?

उत्तर : कविताओं से मेरा नाता बचपन से ही रहा है, छोटी थी तब से चंदा मामा, पराग जैसी बाल पत्रिकाओं में ढूंढ़ ढूंढ़ कर कविताएं पढ़ा करती थी। पढ़ते पढ़ते कब लिखने लगी पता नहीं , बड़ी कक्षा में आने के बाद लिखना एकदम से बंद हो गया समयाभाव के कारण। फिर जॉब, विवाहित जीवन की जिम्मेदारियों के साथ सब छूटता चला गया, परिवार बच्चों की परवरिश में ही रमी रही। अब जब बच्चे बड़े हो गए तो फिर से लिखने की तलब जगने लगी। अब मैं बिल्कुल फ्री हूं तो लिख रही हूं।



प्रश्न: कविता लेखन और अपने काव्य संग्रहों के बारे में बताएं.

उत्तर : अपनी पढ़ाई पूरी कर उत्तरकाशी जिले के बड़कोट नामक स्थान में प्रथम नियुक्ति एक अध्यापिका के पद पर हुई। घर से काफी दूर था, इसलिए जल्द ही अपने गृह जनपद पौड़ी में तबादला होकर आ गई थी। लगभग पांच वर्षों तक जिस इंटर कॉलेज से मैंने इंटरमीडिएट किया था वहीं अपनी सेवाएं दी। मेरी कुछ अध्यापिकाएं (जिन्होंने मुझे पढ़ाया था) तब भी वहां पर कार्यरत थीं। बहुत कुछ उनसे मुझे सीखने को मिला। उसके बाद टिहरी जिले के राजकीय कन्या इंटर कॉलेज नरेंद्र नगर में प्रमोशन पर लगभग दो वर्ष रही।



ससुराल देहरादून में थी, पति भी यहीं कार्यरत थे यहीं आ गई। लगभग पच्चीस वर्ष देहरादून में शिक्षिका के पद पर रहने के उपरांत प्रोन्नति के फलस्वरूप 2017 से देहरादून के डोईवाला ब्लॉक में प्रधानाध्यापिका के पद पर रहकर 2022 में सेवानिवृत्त हुई। अब समय ही समय है लिखने के लिए, इन डेढ़ दो वर्षों में मेरे दो काव्य संग्रह उम्मीदों के काफिले और सुदिन की शब्द वीणा प्रकाशित हुए हैं। आप सबका सहयोग ऐसे ही मिलता रहे, आगे भी प्रयासरत रहूंगी।



प्रश्न : अपने प्रिय कवियों और लेखकों के बारे में बताएं?

उत्तर : छायावादी युग के कवि सुमित्रानंदन पंत,जयशंकर प्रसाद, राजकुमार वर्मा, महादेवी वर्मा, अटल बिहारी वाजपेयी, गीत चतुर्वेदी, हरिवंशराय बच्चन, अमृता प्रीतम, कुमार विश्वास मेरे प्रिय कवि और कवयित्री हैं।


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