धर्म-संस्कृति

तंत्र मंत्र की शक्ति माता कालरात्रि

माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक परंतु माता सदैव शुभ फल देने वाली होने के कारण ‘शुभंकारी’ है। माता से भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। #सत्येन्द्र कुमार पाठक

सनातन धर्म एवं शाक्त सम्प्रदाय के भिन्न भिन्न स्मृतियों , पुराणों में माँ दुर्गा की सातवीं अवतार शक्ति कालरात्रि की उपासना का उल्लेख मिलता है।साधक का का ध्यान माता कालरात्रि को समर्पित सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। सहस्त्रार के लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालरात्रि को काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यू-रुद्राणी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा , रौद्री , धूम्रवर्णा और माता कालरात्रि प्रसिद्ध नाम हैं । नवदुर्गाओं में सप्तम् माता कालरात्रि का अस्त्र तलवार , जीवनसाथी भगवान शिव , सवारी गर्धभ व गदहा है । डेविड किन्स्ले के अनुसार काली का उल्लेख 600 ई. में देवी के रूप में किया गया है।

कालानुक्रमिक रूप से, द्वापरयुग का महाभारत में 3200 ई. पू .में वर्णित माता कालरात्रि रूप में दैत्य , दानव , राक्षस,भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता एवं सकारात्मक ऊर्जा का आगमन करते हैं । शिल्प प्रकाश के अनुसार तांत्रिक पाठ, सौधिकागम, देवी कालरात्रि का वर्णन रात्रि के नियंत्रा रूप में किया गया है। सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। माता कालरात्रि की उपासना से मिलने वाले पुण्य सिद्धियों और निधियों विशेष रूप से ज्ञान, शक्ति और धन , अक्षय पुण्य लोको की कि प्राप्ति एवं समस्त पापों-विघ्नों का नाश होती है। एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता ।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा | वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ।। माता कालरात्रि के शरीर का रंग घने अंधकार की तरहकाला , सिर के बाल बिखरे हुए , गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला , तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल और विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं। माता कालरात्रि की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती , वाहन गर्दभ (गदहा) , ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती , दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में , बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।

माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक परंतु माता सदैव शुभ फल देने वाली होने के कारण ‘शुभंकारी’ है। माता से भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली , दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली तथा उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए।

मां कालरात्रि मंदिर, में डुमरी बुजुर्ग गांव ,नयागांव, सारण (बिहार) , कालरात्रि-वाराणसी मंदिर, डी 8/17, कालिका गली में माता कालरात्रि मंदिर , बिहार का सरैया बुजुर्ग , तिलौथू , गोरखपुर ,दरभंगा में श्यामा माई ,मनेर वंशीय कुलदेवी कालरात्रि मंदिर सिमरी , मध्य्प्रदेश का इंदौर , रुधकी , विलासपुर , विकार ,जरहभहा ,अकबरपुर ,केनापरा ,नयागांव , कोलकाता में दक्षिश्वरी काली , झारखण्ड का चतरा जिले के इटखोरी का भद्रकाली , असम के कामाख्या में भैरवी , बिहार का गया जिले का विभूक्षणि मंदिर , जगनाबाद का मोदनगंज प्रखण्ड के चरुई काली मंदिर , पटना के गंगा नदी के तट पर कालीमंदिर है । वीरता और साहस की माता कालरात्रि का प्रिय वस्त्र लाल ,निवास मणिद्वीप , श्मशान ,है ।

मंत्र है या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान कर। ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः | सिंधिया घराने की कुलदेवी माता काली , और मनेर वंशीय का केंद्र सिमरी कालरात्रि मंदिर , डुमरी एवं माता काली का भक्त गुरु गोरखनाथ है । माता कालरात्रि को श्यामा ,कालिका ,लक्ष्मीकाली , महाकाली , शिवशक्ति ,पार्वती ,श्याम्बिका ,भद्रकाली , दक्षिण काली के रूप में उपासना करते है।


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