साहित्य लहर

कविता : वक्त बदला तो सब कुछ

कविता : वक्त बदला तो सब कुछ, मित्र बनाओं तो सोच समझ कर बनाओं वरना ठगे से रह जाओंगे चूंकि इस समय कोई किसी का नहीं है चूंकि हर कोई स्वार्थी हो रहा हैं अपने स्वार्थ की खातिर वह आपकों कभी भी डस सकता है तभी तो कहते हैं कि सांप पर विश्वास हो जाता है लेकिन इंसान पर विश्वास नहीं होता हैं #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

वक्त बदला तो जीवन में
सब कुछ बदल गया
जीवनचर्या बदल गई
साथी लोग बदलने लगे
जिन्हें वर्षों से अपना समझ कर
आनन्ददायक जीवन जी रहा था
वे साथी लोग ही मतलबी निकलें

वक्त बदला तो जीवन में
सब कुछ बदल गया
पुराने साथी इतने बदल जायेंगे
यह हमने कभी सपने में भी
नहीं सोचा था
जिन्हें अपना समझ कर जी रहे थे
वे ही इतने मतलबी, स्वार्थी
निकल जायेंगे यह कभी

सोचा ही नहीं था
वक्त बदला तो जीवन में
सब कुछ बदल गया
अब याद आता है कि लोग
जब मटकी खरीदते हैं तब
उसे ठोक बजा कर क्यों देखते हैं
अब समझ आया कि जब भी

मित्र बनाओं तो
सोच समझ कर बनाओं वरना
ठगे से रह जाओंगे चूंकि
इस समय कोई किसी का नहीं है
चूंकि हर कोई स्वार्थी हो रहा हैं
अपने स्वार्थ की खातिर

वह आपकों कभी भी डस सकता है
तभी तो कहते हैं कि
सांप पर विश्वास हो जाता है लेकिन
इंसान पर विश्वास नहीं होता हैं

कविता : अपनों का छोटा सा संसार “परिवार”


कविता : वक्त बदला तो सब कुछ, मित्र बनाओं तो सोच समझ कर बनाओं वरना ठगे से रह जाओंगे चूंकि इस समय कोई किसी का नहीं है चूंकि हर कोई स्वार्थी हो रहा हैं अपने स्वार्थ की खातिर वह आपकों कभी भी डस सकता है तभी तो कहते हैं कि सांप पर विश्वास हो जाता है लेकिन इंसान पर विश्वास नहीं होता हैं #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

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