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धर्म-संस्कृति

ब्रह्मांड की सृष्टिकर्ता अष्टभुजी माता कुष्मांडा

उत्तराखण्ड का रुद्रप्रयाग जिले के कुमंडी में स्थित सिल्ला तलाव पर ऋषि अगस्त द्वारा अपनी बाएँ काँख से माता कुष्मांडा का आवरण कर दैत्यों , दानवों का संहार कर बचे दैत्य और दानव सिल्ला तलाव और बद्रीनाथ में पलायन कर गए थे । कुमाड़ी में माता कुष्मांडा मंदिर का निर्माण टिहरी की महारानी द्वारा करायी गयी , रुद्र प्रयाग।  #सत्येन्द्र कुमार पाठक

सनातन धर्म का शाक्त सम्प्रदाय के विभिन्न ग्रंथों में नवरात्र व शक्ति के चौथे अवतार माता कुष्मांडा की उपासना की जाती है। माता कुष्मांडा का शक्ति की चतुर्थ अवतरण ब्रह्म दिवस चैत्र शुक्ल चतुर्थी तिथि को ब्रह्मांड सृजन के लिए हुआ था। साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र माता कुष्मांडा में अवस्थित होता है। नवदुर्गाओं में चतुर्थ माता अष्टभुजाधारी कुष्मांडा का अस्त्र कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा , जीवनसाथी भगवान शिव , सवारी सिंह है।

सृष्टि की आदि स्वरूपा व आदि शक्ति माता कुष्मांडा द्वारा ब्रह्मांड की रचना एवं निवास सूर्यमंडल के अंदर अवस्थित लोक में है। माता कुष्मांडा के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित , ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज की छाया है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। माता कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी , अष्टभुजी माता कहते हैं। सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥ प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।। पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते एवं आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। नवरात्रि में चतुर्थ दिन माता कुष्मांडा की उपासना या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।’ अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। करनी चाहिए ।

मंद, हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण माता कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ , कुम्हड़े , भतूआ , भूरा की बलि प्रिय होने के कारण से माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं । नव विवाहित महिला का पूजन व भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट कराने से माताजी प्रसन्न होकर और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। माता कुष्मांडा की उपासना कुष्मांडा , कुम्हड़ , अष्टभुज , अष्टभुजी ,, बेनिनकासा , हीस्पिडा के रूप में करते है।

उत्तराखण्ड का रुद्रप्रयाग जिले के कुमंडी में स्थित सिल्ला तलाव पर ऋषि अगस्त द्वारा अपनी बाएँ काँख से माता कुष्मांडा का आवरण कर दैत्यों , दानवों का संहार कर बचे दैत्य और दानव सिल्ला तलाव और बद्रीनाथ में पलायन कर गए थे । कुमाड़ी में माता कुष्मांडा मंदिर का निर्माण टिहरी की महारानी द्वारा करायी गयी , रुद्र प्रयाग। जिले के जखोली प्रखण्ड का सिलगढ़ पट्टी के कुमाड़ी में कुष्मांडा मंदिर , उत्तरप्रदेश के घाटनपुर , दिल्ली का झंडेवालान मंदिर ,बाराणसी दक्षिण क्षेत्र में कुष्मांडा मंदिर माँ कूष्माण्डा देवी मंदिर पिपरा माफ, महोबा, उत्तर प्रदेश में माता कुष्मांडा मंदिर है


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