धर्म-संस्कृतिसाहित्य लहर

कविता : नवरात्रि

वे चांदनी रात में रतिरहस्य रचती हैं प्रिय की बांहों में खूब हंसती हैं। सावन में सखियों संग आनंद मनाती हैं सुबह समुद्र की तरफ बहती नदियों में प्यार के फूल बहाती हैं #राजीव कुमार झा

प्रेम के प्रासाद में
महारानी की तरह
सुशोभित
नारियों के चेहरे पर
भव्यता भद्रता के
साथ
कृत्रिम श्रृंगार की
आभा

उनके नैसर्गिक सौंदर्य को
अनुपम बना देती है।
स्वर्णाभूषणों से
सुसज्जित
उनकी देहयष्टि पर
सुंदर परिधानों की
छटा
उनकी भाव भंगिमा को
मोहक गरिमा प्रदान

करती है
वे चांदनी रात में
रतिरहस्य रचती हैं
प्रिय की बांहों में
खूब हंसती हैं।
सावन में सखियों संग
आनंद मनाती हैं
सुबह समुद्र की तरफ
बहती नदियों में
प्यार के फूल बहाती हैं


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