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धर्म-संस्कृति

ज्ञान और समृद्धि की माता ब्रह्मचारिणी

असम के कामख्या का नीलांचल पर्वत की ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य में अवस्थित कामरूप पर्वत की श्रंखला पर उमानंद मंदिर के गर्भगृह में माता ब्रह्मचारिणी स्थापित है। माता ब्रह्मचारिणी का प्रतीक स्वाधिष्ठान चक्र है। सनातन धर्म का ऋग्वेद, देवीभागवत, मार्कण्डेय पुराण और भविष्य पुराण में माता ब्रह्मचारिणी की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन उपासना का महत्वपूर्ण उल्लेख किया गया है। #सत्येन्द्र कुमार पाठक, अरवल, बिहार

सनातन धर्म की शाक्त सम्प्रदाय के विभिन्न ग्रंथों के अनुसार माता ब्रह्मचारिणी का महत्वपूर्ण प्राकट्य सृष्टि प्रारम्भ चैत्र शुक्ल द्वितीया को हुई है। हिम प्रदेश का राजा हिमवंत की पत्नी मैना की पुत्री माता ब्रह्मचारिणी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को उत्तराखण्ड राज्य का चमोली जिले का कारण प्रयाग की नंद पर्वत की श्रंखला पर हुआ था। देवर्षि नारद के उपदेश प्राप्त कर माता ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति वरण करने के लिए घोर तपस्या की थी।

माता ब्रह्मचारिणी को तपश्चारिणी, अर्पणा और उमा कहा गया है। ब्रह्मचारिणी का प्रिय रंग पीला,श्वेत,हरा एवं मिश्री एवं हविष्य प्रिय भोजन है।माता ब्रह्मचारिणी सरल,शांत और सौम्य का प्रतीक है।माता ब्रह्मचारिणी का मंदिर उत्तराखण्ड का चमोली जिले के कर्णप्रयाग स्थित नंद पर्वत पर ब्रह्मचारिणी मंदिर, उत्तर प्रदेश का बनारस की सप्तसागर का कर्ण घंटा क्षेत्र बालाजी जी मंडप, पंचगंगा घाट, दुर्गाघाट, राजस्थान के पुष्कर के ब्रह्म सरोवर ब्रह्मघाट क्षेत्र, सूरत का उमिया धाम,बरेली, केनालरोड किसनपुर,अल्मोड़ा मोकियासेन, सुरकुट पर्वत, टिहरी का जौनपुर पट्टी, चंपावत।

असम के कामख्या का नीलांचल पर्वत की ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य में अवस्थित कामरूप पर्वत की श्रंखला पर उमानंद मंदिर के गर्भगृह में माता ब्रह्मचारिणी स्थापित है। माता ब्रह्मचारिणी का प्रतीक स्वाधिष्ठान चक्र है। सनातन धर्म का ऋग्वेद, देवीभागवत, मार्कण्डेय पुराण और भविष्य पुराण में माता ब्रह्मचारिणी की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन उपासना का महत्वपूर्ण उल्लेख किया गया है। शाक्त साधक मन को माँ ब्रह्मचारिणी के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली माता ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की रुद्राक्ष माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल है।

नवदुर्गाओं में द्वितीय माता ब्रह्मचारिणी का अस्त्र कमंडल व माला, पुत्रों में ऋक्,यजुष,साम,अथर्वा एवं पौत्र:व्याडि,लोकविश्रुत मीमांस,पाणिनी,वररुचि, सवारी पैर है। श्लोक : दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए साधना से जीवन सफल और आने वाली किसी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सक्षम होते है। माता ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।

माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल और अवस्थित मनवाला योगी माता की कृपा और भक्ति प्राप्त करता है। कन्याओं का का विवाह तय होने घर कन्या को बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के हेतु नवरात्रि में द्वितीय दिन माता ब्रह्मचारिणी की उपासना कर या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। का जप कर अभीष्ट फल प्राप्त करते है। अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। द्वितीय नवरात्र ब्रह्मचारिणी की उपासना से यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय के लिए होती है।




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