साहित्य लहर

कविता : जादूगरनी

अब तुम्हारे यारों की महफिल उजरने लगी शहरों में तुम शाम ढलते घूमने लगी अकेला श्रृंगार सूना बना कोठों से बाहर आकर भटकता मन… #राजीव कुमार झा

अपने प्यार की
अदाओं से
कोठों पर बैठी
शरारत से दूर
जिस्म को दिखाती
जन्नत की नूर

मुजरे में थिरकती
घुंगरू बजते
वाह वाह लोग
कहते
कितने करीब से
लोग तुम्हे देखते
जादूगरनी

अब तुम्हारे
यारों की महफिल
उजरने लगी
शहरों में तुम
शाम ढलते घूमने
लगी

अकेला श्रृंगार
सूना बना
कोठों से बाहर
आकर
भटकता मन


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