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कहानीकार और कवयित्री चंचलिका शर्मा से राजीव कुमार झा की बातचीत…

आज के समाज में रहकर अधिक तर कहानियाँ, टीवी सीरीज, सिनेमा सभी में अश्लीलता का प्रदर्शन, अशोभनीय भाषा का प्रयोग दर्शाया जाता है। गाने भी अश्लीलता लिए हुए ही होते हैं। हाँ इन सबसे बचकर भी साहित्यकार हैं जिनकी कलम आज की सच्चाई तो उकेरती है मगर भाषाओं में उनकी दक्षता अपनी होती है। 

राजीव कुमार झा:चंचलिका जी, आप अपने कहानी संग्रह के बारे में बताइए? अपनी कहानियों की विषयवस्तु की संक्षेप में चर्चा कीजिए?

चंचलिका शर्मा: जी , राजीव जी ! मेरे कहानी संग्रह का नाम है ” मन पाखी अकेला ” नामाकरण की वजह है कि इंसान अपने घनिष्ठ रिश्तेदारों , दोस्तों, कार्यालय के सहकर्मियों के संग बिल्कुल अलग अलग रुप में पेश आता है परन्तु उसका मन बिल्कुल अकेला होता है। उसकी सोच मन के अनुसार रहता है। मन की उड़ान पक्षी की तरह है।

मेरी कहानी किताब में मात्र 13 लघु कहानियाँ हैं। सारी कहानियों की कथानक अलग अलग परिवेश को दर्शाती है। आज के समाज में अगर नारी हर क्षेत्र में समाज के परिवेश के विरुद्ध जाकर खुद को स्थापित करने की चेष्टा करती है। कहीं पर बेटे बहू से दूर रहकर माँ एक वृद्धाश्रम चलाती है, सभी जरुरत मंद को आश्रय देती है। उसके मरने के बाद‌ बेटा आकर आश्रम को चलाने का वादा करता है। ऐसे ही सभी कहानी समाज में होने वाले कारनामे को दर्शाते हैं।

एक कहानी ऐसी है जिसमें पति की मृत्यु के बाद पत्नी नौकरी करते हुए अपने एक मात्र पुत्र को पढ़ाती लिखाती डॉक्टरी पढ़ाती । बेटे की इच्छा से उसे विदेश भेजती। बेटा जब वापस भारत लौटता तो अपने साथ विदेशी पत्नी को लाता है। माँ इस बात पर भी खुश रहती कि बेटे की खुशी में ही अपनी खुशी। अंततः बेटे बहू को अपना देश रास नहीं आता क्यों कि यहाँ विदेश की अपेक्षा पैसे कम कमाई होगी। माँ को अकेली छोड़ दोनों विदेश प्रस्थान कर जाते हैं। ऐसे ही समाज के विभिन्न रोज़मर्रा होने वाली घटनाओं पर आधारित मेरी तेरह लघु कहानियाँ हैं।

राजीव कुमार झा:आज के लेखन का परिवेश बदलता जा रहा है और रचनाकार नई चुनौतियों का सामना करते दिखाई देते हैं। इस बारे में आपकी क्या राय है?

चंचलिका शर्मा : राजीव जी , बचपन से हम पढ़ते चले आ रहे हैं ” साहित्य समाज का दर्पण है” आज के साहित्य को पढ़कर यह शीर्षक अक्षरोक्षर सही प्रतीत होता है। आज घर घर में बच्चे ज्ञान, विज्ञान की बातें तो पढ़ते हैं मगर स्कूलों में कोई नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ाता। आज न छात्रों का शिक्षक के प्रति वो सम्मान है और न ही शिक्षकों का छात्रों के प्रति वह स्नेह भाव। बच्चों का चारित्रिक गठन सही न होने की वजह से समाज में अश्लीलता दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं।



आज के समाज में रहकर अधिक तर कहानियाँ, टीवी सीरीज, सिनेमा सभी में अश्लीलता का प्रदर्शन, अशोभनीय भाषा का प्रयोग दर्शाया जाता है। गाने भी अश्लीलता लिए हुए ही होते हैं। हाँ इन सबसे बचकर भी साहित्यकार हैं जिनकी कलम आज की सच्चाई तो उकेरती है मगर भाषाओं में उनकी दक्षता अपनी होती है। कलम सशक्त होनी चाहिए , सच्चाई में मिलावट नहीं होनी चाहिए, बदलते समाज को उनकी करतूत खुलेआम दिखाने की क्षमता होनी चाहिए मगर परिमार्जित भाषा में।



राजीव कुमार झा:आपने लेखन कार्य कब शुरू किया? यह सिलसिला कैसे आगे बढ़ा?

चंचलिका शर्मा: राजीव जी, बचपन से ही एक तरफ़ जैसे मैं चंचल थी, सरल बचपना था, दूसरी ओर सोचने की गंभीर विचार धारा। याद है मुझे जब मैं आठ नौ साल की थी बनारस में हरीशचन्द्र घाट के पास हमारा घर था। जब भी दिल उदास होता ( क्योंकि चार साल में मैंने अपने पिताजी को खोया था) हरीशचन्द्र घाट में जलते मुर्दों को देखकर मनुष्य के जीवन के बारे में सोचकर पहली बार लिखा था कि इस जगत में आने के बाद ही सबको एक दिन इसी तरह जाना है। जीवन है तो मृत्यु भी अनिवार्य है। मेरी माँ ने पढ़ा, उनकी आंखें नम हो गई थी उन्होंने कहा था, उम्र से बहुत बड़ी बात लिखा है तुमने। स्कूल , कौलेज के मैगज़ीन में लिखती थी। पति के असामयिक मृत्यु, बेटों की परवरिश, नौकरी , सब मिलाकर ज़िंदगी बोझ बन गयी थी। तभी से कविताएं नियमित लिखने लगी। सारी कविताओं में दर्द के सिवा कुछ नहीं होते थे। उन्हीं दिनों अखबार में लिखने, आकाशवाणी में कविता पाठ, बच्चों के संग वार्ता। उन्हीं में मन लगा रहता।



राजीव कुमार झा: साहित्य की ओर झुकाव कैसे कायम हुआ?

चंचलिका शर्मा: बचपन से ही पढ़ने की आदत रही है । हिंदी, बांग्ला‌ में अनेकों किताबें पढ़ी। धीरे धीरे कहानी लिखने की आदत भी हो गई। आलेख भी लिखने लगी। समय के साथ साथ कलम की धारा, लिखने का स्तर भी बदलने लगा।



राजीव कुमार झा: अपने प्रिय लेखकों के बारे में बताएं?

चंचलिका शर्मा :बांग्ला, हिंदी दोनों भाषाओं को चूंकि एक ही स्तर में श्रद्धा करती हूँ इसलिए दोनों भाषाओं के लेखक भी मेरे लिए एक स्तरीय सम्मानीय हैं। बचपन से रवींद्र संगीत सीखी हूँ इसलिए रवींद्र नाथ टैगोर जी की कविताएँ, कहानियाँ, गीति नाट्य को पढ़ा है। बंकीम चंद्र चट्टोपाध्याय जी, शरत चंद्र चट्टोपाध्याय, आशा पूर्णा देवी, आशुतोष मुखर्जी, निहार रंजन गुप्त जी, सुकुमार राय, जीवनानंद जी, महाश्वेता देवी, प्रेमचंद जी, महादेवी वर्मा जी, अमृता प्रीतम जी, कबीर जी, रहीम जी, रसखान जी, शिवानी जी, गुलज़ार जी, मन्नू भंडारी जी, कुमार विश्वास, राकेश मोहन जी और भी अनेक।



राजीव कुमार झा:आप कवयित्री हैं? कविता लेखन में अपनी संवेदना और अनुभूतियों को किस तरह देखना चाहती हैं?

चंचलिका शर्मा: हाँ , कविता लिखती हूँ । छंद मुक्त कविताएँ ज़्यादा लिखती हूँ। हर विषय पर लिखती हूँ या यूँ कहूँ काव्य के हर रस में माँ सरस्वती की कृपा से लिख सकती हूँ। फेस बुक पर कई साहित्यिक ग्रुप से जुड़ी हूँ जिसमें अलग अलग इवेंट होते हैं जिसमें चित्र पर आधारित कविता लिखनी होती है अथवा शब्द दिये होते हैं जिससे कविता की रचना करनी होती है। अच्छा लगता है नये नये रुप में लिखना। दरअसल कविता लिखने का मेरा मुख्य उद्देश्य है समाज पर कुछ सकारात्मक ऊर्जा निक्षेप कर सकूँ।



राजीव कुमार झा: इन दिनों आप हिंदी में रविन्द्र संगीत को लेकर काम कर रही है, इसके बारे में बताएं?

चंचलिका शर्मा: कविता, कहानी का अनुवाद करना मुझे अच्छा लगता है। इससे पहले रवींद्र नाथ जी की, सुकुमार राय जी की, तस्लिमा ‌जी की कुछ कविता का मैंने अनुवाद किया‌ है। फिलहाल रवींद्र संगीत का अनुवाद बांग्ला से हिंदी में कर रही हूँ। उन्हीं गानों का जिसका सुर मुझे पता है ताकि हिन्दी में भी गाया जा सके‌।



राजीव कुमार झा : अपने द्वारा सृजित कोई कविता यहां लिखकर प्रस्तुत करें…

चंचलिका शर्मा: यहां मेरी एक कविता प्रस्तुत है …

तुम्हारे दहलीज़ पर कदम रखते ही तुमने एक अलिखित घोषणा पत्र
थमाया था मेरे दिल ओ दिमाग़ को जिसमें हस्ताक्षर तुम्हारे थे…..

मैंने भी तुम्हारी हर बात को मान, सम्मान दिया… एक आकार दिया
उसमें इच्छा से नित नये … रंग भरे वो सारे ख़्वाब तुम्हारे ही थे….



तुम्हारी दी गई ज़िम्मेदारियों को गले में लटकाया स्वर्ण हार की तरह
पारस पत्थर की तरह उसे घिसकर परखने के अरमान पूरे तुम्हारे थे…

घोषणा पत्र ,प्रमाण पत्र का सिलसिला सदियों से हस्ताक्षरित पुरुषों ने किया
स्त्रियों को तो कंठस्थ होती इबारत उसकी मगर पुरस्कृत प्रमाण पत्र कभी उन्हें हासिल न थे..


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