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मौना में होती थी एकता की प्रतीक चार गाँवों की रामलीला

भुवन बिष्ट

रानीखेत (अल्मोडा़)। कहा जाता है मंच मिलना सौभाग्य की बात होती है। वास्तव में यदि प्रतिभाओं को मंच मिल जाये तो यह किसी वरदान से कम नहीं। आजकल आधुनिकता की चकाचौंध मोबाईल, इण्टरनेट, टीवी और समाज में बढ़ते नशे की प्रवृत्ति आदि ने अनेक रंगमंच के कार्यक्रमों को प्रभावित किया है। इनमें प्रमुख स्थान रामलीला मंचन का भी है। अनेक स्थानों में आज भी भव्य रामलीला मंचन का आयोजन किया जाता है।विकासखण्ड ताड़ीखेत के मौना गाँव में भी पूर्व में चार गाँवों की रामलीला के लिए प्रसिद्ध था।

मौना, चौकुनी, बनोलिया, कलौना गाँवों के लोग मिलकर भव्य रामलीला मंचन का आयोजन मौना में करते थे। मौना गाँव की रामलीला अपनी भव्यता, सुंदर गेयता, सुंदर अभिनय, सुंदर मंचन व बहुत बड़े क्षेत्र की एकता को समेटे हुई थी। लगभग साठ के दशक में गाँव के जागरूक लोगों द्वारा रंगमच के द्वारा गाँव एंव क्षेत्र के नवयुवाओं को रंगमंच से जोड़ने व उनकी प्रतिभाओं को आगे लाने के सर्वप्रथम नकुड़ नामक बाखली में कृष्ण सुदामा, राजा हरिशचन्द्र नाटकों का मंचन आरम्भ किया गया। उसके बाद इन कार्यक्रमों के सफल आयोजन व उत्साह को देखते हुए क्षेत्र के लोगों ने रामलीला मंचन करने का निर्णय लिया।

रामलीला मंचन में उसके लिए होने वाली तालीम बहुत महत्वपूर्ण है। मौना में होने वाली रामलीला में मौना, चौकुनी, कलौना, बनोलिया, नावली, म्वाण के लोग पात्र चयन में प्रतिभाग करते थे। जानकारी के अनुसार उस समय पात्रों के चयन में बहुत प्रतिस्पर्धा रहती थी और एक एक पात्र के लिए अनेक लोग खड़े रहते थे और जो सही गेयता, सही अभिनय करता था उसे ही चयन किया जाता था। रामलीला मंचन में कृत्रिम प्रकाश के रूप में पैट्रोमैक्स की भी बहुत बड़ी भूमिका रही है। पैट्रोमैक्स के उजाले में भी शानदार रूप से रामलीला का मंचन किया जाता था।

चार गाँवों की रामलीला एक ही स्थान पर होने के साथ ही इसकी तालीम कुछ वर्षो तक चौकुनी में भी आयोजित की गयी थी। बहुत बड़े क्षेत्र में एकमात्र मौना में होने वाली रामलीला में पात्रों का चयन सबसे कठिन प्रक्रिया होती थी। बड़े बड़े किरदारों में अनुभवी रहे कलाकारों को ही प्राथमिकता मिलती थी। यहाँ की रामलीला मंचन में कोरस पार्टी, राधाकृष्ण नृत्य, व विनती गणों का सबसे पहले अभिनय भी बहुत आकर्षण के केंद्र हुआ करते थे जिन्हें दर्शक खूब सराहा करते थे।

अपनी एकता व सुंदर आयोजन के लिए क्षेत्र जानी जाती थी यह रामलीला

मौना में होने वाली रामलीला को देखने के लिए दूर दूर से दर्शकों पहुंचते थे जिसमें रानीखेत, मजखाली, कालिका, मंगचौडा़, मकड़ो, पीपलटाना, मटेला, गगास, छानागोलू, गिनाई ,जाना, बग्वालीपोखर आदि स्थानों से भी लोग मौना में रामलीला मंचन देखने को पहुंचते थे। रामलीला मंचन में सबसे अधिक भीड़ सीता स्वयंवर, खरदूषण वध सीता हरण, अंगद रावण संवाद, लक्ष्मण मेघनाद संवाद को देखने की उमड़ती थी। सभी गाँवों के लोग मिलजुलकर संसाधनों को जुटाते थे और एकता की प्रतिक इस रामलीला मंचन का सफल आयोजन भी करते थे। मौना गाँव में होने वाली इस रामलीला में मौना, चौकुनी, बनोलिया कलौना, नावली म्वाण के लोगों युवाओं की विशेष भूमिका रहती थी।

इसमें पात्रों के मेकप के लिए मेकप मास्टर,प्रमोटिंग मास्टर, पर्दा मास्टर, लाईट व गैस मास्टर सबकी भूमिका पर्दे के पीछे बहुत महत्वपूर्ण होती थी। इसके लिए बहुत अनुभवी व्यक्तियों का चुनाव किया जाता था। वहीं संगीत रामलीला मंचन का सबसे महत्वपूर्ण भाग है इसके लिए हारमोनियम उस्ताद, तबला वादक, चिमटा वादक पात्रों के अभिनय व गेयता को सुंदर रूप प्रदान किया करते थे। ये तालीम में एक दो माह पूर्व से ही सभी पात्रों को हारमोनियम व तबले की धुन पर गेयता के आधार पर तैयार करते थे। चार गाँवों की रामलीला के नाम से प्रसिद्ध मौना की रामलीला अपनी सुंदर अभिनय, सुंदर गेयता, सुंदर आयोजन के लिए जानी जाती है। यह क्षेत्र की एकता अखंडता के रूप में भी जानी जाती है।

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