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डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’ का परिचय

डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’ का परिचय, “बचपन से ही मेरा पूरा परिवेश साहित्य और संस्कृति से जुड़ा रहा। इस कारण मेरा रुझान साहित्य की ओर स्वभावत: कायम रहा है। साहित्य का संस्कार मुझे मेरे पिता से मिला है।” मेरी दृष्टि में हिंदी भाषा ही है जो अपने सीधे और सरल रूप से जनजीवन तक अपनी बात को उन तक पहुँचा पाती है।

परिचय नाम- डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
पिता का नाम- ठा. नरेन्द्र पाल सिंह पुंढीर
माता का नाम- श्रीमती माधुरी लता सिंह
जन्म तिथि- 13 दिसम्बर
शिक्षा- एम.ए. हिन्दी साहित्य, पी.एच.डी
सम्प्रति- प्राचार्या, श्री गणेश महाविद्यालय, मांडवी, जिला- बैतूल

प्रकाशित रचनायें-‘लोक साहित्य (खण्ड1) आस्था प्रकाशन,नागपुर,’कवि त्रिलोचन अनाहत शब्दों का पहरुआ’,आस्था प्रकाशन, नागपुर, ‘देहरी’ (मानविकी एवं समाजविज्ञान की शोध पत्रिका), राका प्रकाशन ,इलाहाबाद,’आलोचना की रचना धर्मिता’,आस्था प्रकाशन नागपुर,’ हिन्दी साहित्य :नारी अंतर्द्वन्द्व’ जे.टी.,एस. प्रकाशन नई दिल्ली, ‘ लोक साहित्य एवं संस्कृति ‘ , जे. टी. एस. प्रकाशन, नई दिल्ली, ‘ भारतीय संस्कृति एवं साहित्य में मानव मूल्य’, जे. टी. एस. प्रकाशन, नई दिल्ली ‘ भारतीय इतिहास :साहित्य और संस्कृति’, जे.टी.एस. प्रकाशन,नई दिल्ली,’आधुनिक हिन्दी कविता’,जे.टी.एस. प्रकाशन,नई दिल्ली में आलेख प्रकाशित, श्री नर्मदा प्रकाशन के साझा काव्य संकलन ‘सृजन संगम’, ‘अंतर्मन के भाव’, ‘भावों की रश्मियां’ में रचनायें प्रकाशित, ‘दीवान मेरा’ ‘नागपुर, की पत्रिका, ‘ब्रमवाहिनी’ बैतूल , से प्रकाशित पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित ,’लब्जों का कारवां ‘ कविता संग्रह में रचनायें प्रकाशित, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सेमीनारों में अपने आलेखों के द्वारा सहभागिता के साथ आलेखों का वाचन,एवम आलेख प्रकाशित।

किन्नौर अब तक चैनल पर ऑनलाइन कविताओं का लगातार कविता पाठ
शब्दाक्षर केंद्रीय पटल दिल्ली पर ऑनलाइन कविता पाठ
साक्षात्कार- जनसरोकार मंच द्वारा लाइव साक्षात्कार

प्रकाशित पुस्तक- ‘उपन्यासों में संवेदना और शिल्प’
‘उच्छ्वास की सांस’ कविता संग्रह प्रकाशन हेतु तैयार

प्राप्त सम्मान- श्री दाताराम सरस्वती सम्मान (अखिल भारतीय साहित)

साहित्य और संस्कृति से जुड़ा रहा डॉ पल्लवी का बचपन


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डॉ पल्लवी सिंह 'अनुमेहा' का परिचय, "बचपन से ही मेरा पूरा परिवेश साहित्य और संस्कृति से जुड़ा रहा। इस कारण मेरा रुझान साहित्य की ओर स्वभावत: कायम रहा है। साहित्य का संस्कार मुझे मेरे पिता से मिला है।" मेरी दृष्टि में हिंदी भाषा ही है जो अपने सीधे और सरल रूप से जनजीवन तक अपनी बात को उन तक पहुँचा पाती है।

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