कविता : घरौंदा

कविता : घरौंदा, अमराइयों में किसी दुपहरी के पहर दिन बिताते अंधेरी रात में चांद को आंगन में बुलाते याद आते वो कुछ दिन अरी सुंदरी! तब हम बेहद अकेले होकर किसी दिन तुम्हारे पास जब आते सबको, बिहार से राजीव कुमार झा की कलम से…
बचपन के दिन
जब याद आते
किसी दिन भूले बिसरे
कुछ दोस्तों को
अपने पास पाते
उनके घर खेलने
चले जाते
अपने मन की बातें
बताते
जाड़े की धूप में गीत
गाते
कुछ गुनगुनाते
सूरज के किरनों की
छांव में
दीवाली की याद में
घरौंदा बनाते
सुबह के फूल बनकर
आंगन को सजाते
कभी पेड़ की डाल पर
चढ़ कर
गर्मी की छुट्टियों में
अमराइयों में
किसी दुपहरी के पहर
दिन बिताते
अंधेरी रात में चांद को
आंगन में बुलाते
याद आते वो कुछ दिन
अरी सुंदरी !
तब हम बेहद अकेले
होकर
किसी दिन तुम्हारे पास
जब आते
सबको क्या बताते
सारी कविता कहानी
व्यर्थ हो जाती
नानी की याद जब
आती
अपने घर पहुंचने की
खुशी में
गर्मी के दिनों में
वह गुड़ का शर्बत
पिलाती
कभी हंसकर
नाना के बारे में
बताती
यहां से लौटती राह में
महुए के पेड़ के नीचे
हवा सूखती घास पर
धूप में लेटी मदमदाती
गलियों में
सितारों के साथ
कभी बाजा बजाती
उन दिनों सिनेमाघरों की
भीड़भाड़ में
जिंदगी को
सात रंगों से सजाती
यादों की गलियों से
गुजरती
तुम कभी जब मुंडेर पर
मुस्कुराती
बचपन का कोई गीत गाती
पास आती
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