
राज शेखर भट्ट
सम्पादक, मान्यता प्राप्त पत्रकार (उत्तराखण्ड सरकार)
उत्तराखण्ड, देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध, हिमालय की गोद में बसा एक अत्यंत सुंदर, पवित्र और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध राज्य है। यहाँ की पर्वतीय चोटियाँ, नदियाँ, मंदिर, घाटियाँ और जैव विविधता हर वर्ष लाखों पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। विशेषकर गर्मियों, चारधाम यात्रा और सर्दियों के दौरान तो यहाँ पर्यटकों का ताँता लग जाता है। पर्यटन से जहाँ राज्य को आर्थिक लाभ मिल रहा है, वहीं पर्यटकों के कुछ नकारात्मक व्यवहारों के कारण स्थानीय पर्यावरण, संसाधन और संस्कृति को गंभीर खतरे भी उत्पन्न हो रहे हैं। इस आलेख में हम उत्तराखण्ड में पर्यटकों के सकारात्मक और नकारात्मक व्यवहारों का विश्लेषण करेंगे, और यह समझने का प्रयास करेंगे कि इस पर्यटन-प्रवाह को कैसे संतुलित किया जा सकता है।
✨ सकारात्मक पहलू
1. स्थानीय अर्थव्यवस्था का सशक्तिकरण
उत्तराखण्ड के कई गाँव जो पहले पलायन और बेरोजगारी की मार झेल रहे थे, अब पर्यटन के चलते आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं। पिथौरागढ़ जिले के खाती, लोहाजंग, हर्षिल जैसे इलाकों में स्थानीय युवाओं ने होमस्टे, कैम्पिंग, ट्रैकिंग गाइडिंग और लोक-संस्कृति आधारित पर्यटन की शुरुआत की है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, खाती गांव में एक स्थानीय गाइड दो महीने में लगभग ₹90,000 तक कमा रहा है।
- बागेश्वर, रानीखेत, और कौसानी जैसे स्थानों में स्थानीय उत्पादों जैसे ऊनी कपड़े, शहद, और हस्तशिल्प को खरीदने वाले पर्यटकों से ग्रामीणों को अतिरिक्त आमदनी हो रही है।
2. पर्यटन से शिक्षा और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा
- युवा अब नौकरी के बजाय स्वरोजगार की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
- महिलाएँ भी होमस्टे संचालन और किचन सेवाओं से परिवार के आय में योगदान दे रही हैं।
- पर्यटकों के संपर्क में आने से स्थानीय लोगों में संवाद कौशल और सामाजिक जागरूकता में भी सुधार हुआ है।
3. संस्कृति और परंपरा का संरक्षण
बग्वाल (चंपावत), फूलदेई (गढ़वाल), और हरेला (कुमाऊँ) जैसे पारंपरिक त्यौहारों को पर्यटक अनुभव करते हैं, जिससे उनकी पहचान वैश्विक स्तर पर होती है।
⚠️ नकारात्मक पहलू
1. पर्यावरण प्रदूषण और कचरा संकट
- मसूरी, नैनीताल, ऋषिकेश जैसे पर्यटन स्थलों में प्लास्टिक की बोतलें, चिप्स के पैकेट और खाने के रैपर खुले में फेंके जाते हैं।
- नैनीताल झील और ऋषिकेश के गंगा घाटों में पानी प्रदूषित हो रहा है।
- जंगलों में शराब की बोतलें, थर्माकोल और काँच फेंकने से वन्यजीवों को खतरा है।
2. वन्यजीवों के प्रति असंवेदनशीलता
- हाल ही में नैनीताल में पर्यटकों ने संरक्षित चित्तीदार पक्षी को गोली मार दी।
- कुमाऊँ और गढ़वाल में ट्रेकिंग मार्गों पर पर्यटकों द्वारा लाउड म्यूजिक बजाने और वन्यजीव क्षेत्रों में ड्रोन उड़ाने के मामले सामने आए हैं।
- ऐसे व्यवहार जैव विविधता के लिए गंभीर खतरा हैं।
3. अव्यवस्थित यातायात और संसाधनों पर दबाव
- पर्वतीय नगरों में सीमित सड़क व्यवस्था है, लेकिन पर्यटकों की संख्या इसे कई गुना पार कर रही है।
- पार्किंग स्थलों की कमी, ट्रैफिक जाम और प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।
- शौचालय, पानी, बिजली जैसे मूलभूत संसाधनों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है।
4. सांस्कृतिक असंवेदनशीलता और अनुशासनहीनता
- मंदिरों में अनुशासनहीनता, नदी किनारे शराब पीना, धार्मिक स्थलों में अश्लील फोटोशूट जैसे मामलों में वृद्धि हो रही है।
- कई पर्यटक स्थानीय संस्कृति की परवाह किए बिना ऊँचे स्वर में गाना बजाना, अश्लील हरकतें और धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले व्यवहार करते हैं।
🛠 समाधान और सुझाव
1. पर्यटक शिक्षा और जागरूकता
- राज्य को प्रत्येक प्रवेश बिंदु पर पर्यटक आचार संहिता (Tourist Code of Conduct) का प्रसार करना चाहिए।
- होटलों, होमस्टे और टूर एजेंसियों को नियमों की जानकारी देना अनिवार्य हो।
- डिजिटल प्लेटफार्म पर उत्तराखण्ड के पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्व को बताने वाले वीडियो और लेख प्रचारित किए जाएं।
2. सख्त कानून और उनका पालन
- सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फैलाने, प्लास्टिक इस्तेमाल, शराब पीने, ध्वनि प्रदूषण करने पर कड़ा जुर्माना लगे।
- धार्मिक स्थलों पर कैमरा, मोबाइल और अशोभनीय व्यवहार पर निगरानी के लिए CCTV और सुरक्षाकर्मी तैनात हों।
- वनों में पर्यटक गतिविधियों की निगरानी के लिए ड्रोन और सैटेलाइट तकनीक का उपयोग किया जाए।
3. स्थायी पर्यटन नीति (Sustainable Tourism Policy)
- “Carrying Capacity” — यानी किसी स्थल पर एक समय में अधिकतम पर्यटकों की संख्या तय की जाए।
- ग्रीन टैक्स, इको टैक्स और होमस्टे प्रमाणन के जरिए स्थानीय जिम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए।
- पहाड़ी मार्गों पर यात्रियों की संख्या नियंत्रित हो।
4. स्थानीय भागीदारी और लाभ वितरण
- प्रत्येक ब्लॉक में ‘पर्यटन ग्राम’ की अवधारणा विकसित की जाए।
- गाइडिंग, फोटोग्राफी, हर्बल टूरिज्म जैसी सेवाओं में स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित किया जाए।
- सरकार और NGOs द्वारा सामूहिक सफाई अभियान और स्थानीय संस्कृति की शिक्षा दी जाए।
पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार को मात्र वाहवाही लूटने के लिए घोषणाएं ही नहीं करनी चाहिए अपितु धरातल पर कर दिखाना चाहिए । अधिकारी इस ओर अपनी ईमानदारी व निष्ठा से कार्य करें वहीं जनता-जनार्दन पर्यटन स्थलों पर साफ सफाई रखें । केवल सरकार को ही दोष न दे अपितु अपना नैतिक दायित्व भी निभाये तभी हम पर्यटन को सही ढंग से बढावा दे पायेंगे ।