कविता : पूस की रात

कविता : पूस की रात, कोहरे की चादर से, देखो ढकी तराई है, सूरज की किरणें भी धरती पर न आई हैं। पहाड़ों पर हो रही है भीषण बर्फबारी, सर्द हवाओं का सितम भी है जारी। ठंड के चलते लोग घरों में हैं दुबके, बहराइच, उत्तर प्रदेश से सुनील कुमार की कलम से…
कोहरे की चादर से, देखो ढकी तराई है
सूरज की किरणें भी धरती पर न आई हैं।
पहाड़ों पर हो रही है भीषण बर्फबारी
सर्द हवाओं का सितम भी है जारी।
ठंड के चलते लोग घरों में हैं दुबके
चौराहों पर अब अलाव कम हैं जलते।
सुकून से कटता न दिन न ही रात है
कितनी बेदर्द पूस की ठंड भरी रात है।
तन ढकने को न कंबल न ही रजाई पास है
इस भीषण ठंड में बस प्रभु की ही आस है।
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