
✍️ विजय गर्ग
डॉ. सत्यवान सौरभ समकालीन हिंदी साहित्य के उन विरले रचनाकारों में शामिल हैं जिनकी लेखनी में विचारों की स्पष्टता, भावों की गहराई और सामाजिक सरोकारों की गंभीरता का अद्भुत संगम मिलता है। वे न केवल एक प्रखर कवि हैं, बल्कि एक सजग स्तंभकार, कुशल दोहाकार, प्रभावशाली बाल साहित्यकार और ग्रामीण भारत की आत्मा को शब्दों में ढालने वाले सच्चे जनकवि भी हैं।
हरियाणा की मिट्टी में जन्मे और वहीं की संवेदना से सींचे गए डॉ. सौरभ की रचनाओं में गाँव की गलियों की ख़ामोशी, खेतों की आहट, बच्चों की किलकारी और समाज की विडंबनाएँ स्वाभाविक रूप से आकार लेती हैं। वे लेखन को केवल संवाद नहीं, बल्कि संवेदनशील उत्तरदायित्व के रूप में निभाते हैं।
🎓 बौद्धिक पृष्ठभूमि और साहित्य दृष्टि
राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर और शोध कार्य के दौरान डॉ. सौरभ ने साहित्य को केवल सौंदर्यबोध की वस्तु न मानकर सामाजिक परिवर्तन का औजार माना। उनका लेखन किसी वाद, दल या तात्कालिक प्रवृत्ति से संचालित नहीं, बल्कि अनुभव, आत्मसत्य और नैतिक चेतना से प्रेरित होता है।
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“साहित्य वही नहीं जो केवल पढ़ा जाए, बल्कि जो पढ़कर जीवन की दिशा बदले, सोच उभरे और समाज जागे।”
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📚 प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ
डॉ. सौरभ का साहित्य विविध विधाओं में फैला है — कविता, दोहा, बाल साहित्य, निबंध, लघुकथा, और अंग्रेज़ी निबंध। हर विधा में उन्होंने अपने विचारों और संवेदनाओं को सजीव अभिव्यक्ति दी है।
✍️ काव्य-संग्रह
- यादें – स्मृतियों की भीगी पगडंडियों से जीवन के रंगों तक की काव्य यात्रा।
- तितली है ख़ामोश (दोहा संग्रह) – स्त्री, समाज और आत्मा की मूक पुकार।
- कहता है कुरुक्षेत्र (दोहा संग्रह) – आधुनिक भारत की सच्चाइयों को कुरुक्षेत्र के प्रतीकों में पिरोता चिंतन।
इन रचनाओं में महादेवी वर्मा की करुणा, दुष्यंत कुमार का आक्रोश, और कबीर की तीव्रता का आत्मिक स्पर्श है।
👶 बाल साहित्य
डॉ. सौरभ मानते हैं कि बाल साहित्य मनोरंजन नहीं, संस्कार और सोच का बीजारोपण होता है।
- काग़ज़ की नाव – बच्चों की कल्पना और संघर्ष को समर्पित।
- चुन्नू-मुन्नू की कविताएँ – नैतिक मूल्यों की सहज कविताएँ।
- बाल प्रज्ञान – शिक्षाप्रद और प्रेरक बाल रचनाएँ।
- आधुनिक बाल पहेलियाँ – नवीन, रोचक और बौद्धिक कौशल बढ़ाने वाली पहेलियाँ।
🌿 निबंध और लघुकथा
- कुदरत की पीर – पर्यावरण की पुकार और मानव की जिम्मेदारी।
- खेड़ी-बाड़ी और किसानी – किसान की ज़ुबान, ज़मीन और ज़ख्म का दस्तावेज़।
- Issues and Pains (अंग्रेज़ी निबंध संग्रह) – समकालीन मुद्दों पर संवेदनात्मक दृष्टिकोण।
- फैसला (लघुकथा संग्रह) – छोटी-छोटी कथाओं में बड़े जीवन-संदेश और सामाजिक द्वंद्व।
इन रचनाओं में पारिस्थितिकी, संवेदना और सामाजिक यथार्थ का गहरा समन्वय है।
📰 स्तंभकार और सामाजिक टिप्पणीकार
डॉ. सौरभ देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और पोर्टलों पर समसामयिक मुद्दों पर सक्रिय लेखन करते हैं। उनके स्तंभों में प्रमुख विषय होते हैं:
- शिक्षा की विसंगतियाँ
- किसान आत्महत्या और ग्रामीण संकट
- जातिवाद और सामाजिक न्याय
- डिजिटल युग और मानसिक स्वास्थ्य
- नारी सशक्तिकरण और सांस्कृतिक चुनौतियाँ
उनका लेखन किसी एजेंडा को नहीं, बल्कि जन की पीड़ा और प्रश्नों को स्वर देने का कार्य करता है।
🏆 मंचीय सहभागिता और सम्मान
डॉ. सौरभ ने अनेक राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों, बाल साहित्य गोष्ठियों और साहित्यिक आयोजनों में सक्रिय सहभागिता की है। विशेष रूप से दोहों के माध्यम से सामाजिक आलोचना में उनकी प्रस्तुति श्रोताओं को सोचने पर मजबूर करती है। ऑनलाइन मंचों पर उनके लेख, कविताएँ और वीडियो हजारों पाठकों तक पहुँचते हैं।
✒️ लेखन की आत्मा
डॉ. सौरभ की लेखनी आभिजात्य भाषा के मोह से दूर, धरती की गंध, माँ की पीड़ा, बच्चे की हँसी, किसान की खामोशी और स्त्री की चुप चीख को शब्द देती है।
उनकी शैली सहज है, पर साधारण नहीं;
भावनाएँ गहरी हैं, पर भावुकताभरी नहीं;
और सबसे महत्त्वपूर्ण — उनकी लेखनी में वह ईमानदारी है जो आज के युग में विलुप्त होती जा रही है।
🌱 निष्कर्ष
डॉ. सत्यवान सौरभ केवल एक लेखक नहीं हैं — वे समय का दर्पण, समाज का सहृदय पाठक और आने वाले भारत के स्वप्नद्रष्टा कवि हैं। यदि आप कविता में चिंतन, निबंध में संवेदना, और बाल साहित्य में सादगी ढूँढ रहे हैं — तो डॉ. सौरभ की पुस्तकें आपके मन, मस्तिष्क और आत्मा — तीनों को समृद्ध करेंगी।
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📌 संपादकीय टिप्पणी (Editor’s Note):
डॉ. सत्यवान सौरभ की साहित्यिक यात्रा केवल रचनाओं का विस्तार नहीं, बल्कि संवेदना, विचार और प्रतिबद्धता का जीवंत दस्तावेज़ है। यह लेख न केवल उनके साहित्यिक योगदान का परिचय कराता है, बल्कि समकालीन हिंदी साहित्य में उनकी स्वतंत्र, निर्भीक और जनकेंद्रित उपस्थिति को भी रेखांकित करता है। उनका लेखन हमें यह विश्वास दिलाता है कि साहित्य अभी भी समाज का आईना बन सकता है, बशर्ते वह ईमानदारी और संवेदना से लिखा गया हो।
— संपादक
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