
✍️ सुनील कुमार माथुर
स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार, जोधपुर (राजस्थान)
जीवन में सहयोग का होना नितांत आवश्यक है। चूंकि मानव जीवन तो हमें संयोग से मिल गया है, लेकिन घर-परिवार, समाज और राष्ट्र में यदि किसी का सहयोग न मिले, तो फिर यह अनमोल मानव जीवन किस काम का है? क्योंकि यह मानव जीवन आपसी सहयोग से ही चलता है। इसलिए सभी के साथ हिल-मिल कर रहना चाहिए, तभी हम अपने निर्धारित लक्ष्यों को हासिल कर पाएंगे। जहाँ एकता, सहयोग, संगठन है वहीं प्रगति है, अन्यथा अकेला जीवन किस काम का? इसका मतलब यह नहीं है कि हम हर वक्त सहयोग की अपेक्षा में ही अपना समय बर्बाद कर दें।
आप अपनी योग्यता और अनुभव के आधार पर किसी कार्य की शुरुआत कीजिए और अपने अनुभवों के बल पर कदम-दर-कदम आगे बढ़ते रहिए — आपको अपनी मंज़िल अवश्य मिलेगी। कार्य के दौरान जहाँ आपको सहयोग की ज़रूरत पड़े, वहाँ बेहिचक होकर किसी अनुभवी व्यक्ति का सहयोग अवश्य लें। किसी का सहयोग लेना बुरी बात नहीं है, बल्कि इससे हमारा अनुभव बढ़ता है और हमें नवीन जानकारी प्राप्त होती है। यही कारण है कि आप ही नहीं, बल्कि यह समूची दुनिया एक-दूसरे के सहयोग से ही चल रही है। इसलिए जीवन में धैर्य का दामन कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि सभी कार्य सफल होने से पहले कठिन ही लगते हैं।
पहचान
जीवन में व्यक्ति की अपनी खुद की भी पहचान होनी चाहिए। हर वक्त उसकी पहचान उसके परिवारजनों या रिश्तेदारों के माध्यम से नहीं होनी चाहिए। जब आप में कोई प्रतिभा है, हुनर है, तो उसे निखारकर समाज के समक्ष इस तरह प्रस्तुत करें कि समाज आपकी योग्यता और कार्यक्षमता की सराहना करे, और दूसरों को भी उससे अवगत कराए। इससे समाज में आपकी एक अलग पहचान बन पाएगी।
जब आपने समाज के समक्ष अपनी पहचान बना ली, तो फिर देखिए — उसका डंका कहाँ-कहाँ और कितनी दूर तक बजता है। बस सजगता, जागरूकता व कार्यकुशलता पर आपका नियंत्रण होना चाहिए। आज का युग तकनीकी का युग है, इसलिए अपने कार्य का, उसके पूर्ण होने से पहले प्रचार-प्रसार न करें और न ही व्हाट्सएप पर किसी के समक्ष आउट करें। अन्यथा सब गुड़-गोबर हो जाएगा और वह व्यक्ति आपका नाम हटाकर, उसी कार्य को अपने नाम से प्रचारित कर देगा।
इसलिए कार्य की गोपनीयता को बनाए रखें।
किसी के साथ रहें तो वफ़ादार बनकर रहें, धोखा देना गिरे हुए लोगों की पहचान है।
किसी महापुरुष ने बहुत ही सुंदर बात कही है—
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“समय की धारा में उम्र बह जानी है,
जो घड़ी जी लेंगे — वही यादगार बन जानी है।”
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🖋️ संपादक की टिप्पणी (Editor’s Note):
श्री सुनील कुमार माथुर का यह लेख हमें जीवन के दो मूलभूत सत्यों — संयोग और सहयोग — की महत्ता का बोध कराता है। उनके विचारों में जीवन का व्यावहारिक अनुभव, आत्मानुशासन, और सामाजिक चेतना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यह लेख आज के आत्मकेंद्रित समय में एक उपयोगी मार्गदर्शन की तरह काम करता है — जहाँ व्यक्ति को न केवल दूसरों से अपेक्षा करनी चाहिए, बल्कि स्वयं भी समाज के लिए सहयोगी बनना चाहिए। लेख की भाषा सहज, भावपूर्ण और प्रेरणात्मक है, जो हर वर्ग के पाठकों को एक नई दृष्टि देने में सक्षम है।
Nice
Nice article