
सुनील कुमार माथुर, जोधपुर
जीवन में जब आप कठिन परिश्रम करते हैं तो उसका फल अवश्य ही मिलता है। चूंकि फल पाना भले ही हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन परमात्मा वक्त आने पर हमें हमारी मेहनत का फल अवश्य ही देते हैं, क्योंकि उन्हें सब पता होता है कि किसे, कब, क्या और कितना देना है। बस हमें तो सदैव इस बात का ध्यान रखना है कि जब भी कार्य करें तो बस सिर्फ बेस्ट देना है। हमारे नेक कर्म ही हमारी शक्ति, पूजा-आराधना और हमारी गुडविल हैं।
अब ओलंपिक पदक विजेता भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पी.वी. सिंधु को ही लीजिए। वे कहती हैं कि सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। आप सपने फ्री में देख सकते हो, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। जब आपके दिमाग में एक लक्ष्य निर्धारित होता है, तो आपको और चीजों की कमी नहीं खलती है।
वे बताती हैं कि, “मैं हमेशा मोटिवेट रहती हूं — ऐसा नहीं है, लेकिन कभी-कभी दुनिया को दिखाना पड़ता है कि आप मजबूत हो।” और यही बात आपको हमेशा आगे रखती है। कहने का तात्पर्य यह है कि आप किसी भी क्षेत्र में कार्यरत क्यों न हों, पर खुद को बेहद मजबूत दिखाना जरूरी है — तभी सफलता की सीढ़ियां आराम से चढ़ पाओगे।
डॉ. नेहा शर्मा का कहना है कि डॉक्टर का पेशा समाज सेवा का कार्य है। हर डॉक्टर रोगी को सेवा-भाव से ही देखकर उसका उपचार करता है, चूंकि लोग डॉक्टर को इस धरती का देवता मानते हैं। भले ही डॉक्टर देवता नहीं है, वह भी आप और हमारे जैसा ही इंसान है, लेकिन जनता का विश्वास है — इसलिए वह उसे देवता मानती है।
शांत प्रवृत्ति की सेवाभावी डॉ. नेहा शर्मा जब रोगी को देखती हैं तो वह पहले रोगी की सारी समस्याएं धैर्य से सुनती हैं और फिर उससे चर्चा कर उसका उपचार करती हैं। इससे रोगी के मन का भय समाप्त हो जाता है और वह डॉक्टर को अपने ही परिवार का एक सदस्य मानकर बिना हिचक और डर के उपचार करवा लेता है।
डॉ. शर्मा की कार्यशैली अपने आप में ही अलग है। वह तो सिर्फ अपना बेस्ट देना चाहती हैं, ताकि रोगी और डॉक्टर के बीच अभिभावक जैसा संबंध हो — चूंकि उसका असर परिणाम पर भी पड़ता है।
Nice article