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भक्ति और ईश्वर

भक्ति और ईश्वर… चोर ने जब डिबिया खोली त़ो पारस मणि एक काले कपडे में लिपटी हुई थी। महात्मा ने कहा कि यह कपडा पारस मणि और लोहे की डिबिया के बीच एक पर्दा था जिसके कारण दोनों एक-दूसरे के सम्पर्क में न आ सके और लोहे की डिबिया सोना नहीं बन पाई। ठीक उसी प्रकार हमारी आंखों के आगे अज्ञानता रूपी पर्दा है… #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

ईश्वर हर जगह विराजमान हैं। फिर भी हम उसे अपनी इन आंखों से नही देख पा रहे है, लेकिन ईश्वर हमारे एक एक पल को अपने पास लिख रहा है। उसकी निगाहें हम पर पूरी तरह से हैं लेकिन हमारी भक्ति में कमी होने से हम ईश्वर को नहीं देख पा रहे हैं। जब तक हम एकाग्रचित्त होकर उसकी आराधना नहीं करेगे और अपने आपको उसके चरणों में अर्पित नहीं कर देते तब तक उनके दर्शन पाना कठिन है। हमें इस सांसारिक सुख सुविधाओं से दूर होना होगा।

किसी ने सही कहा कि धन, सुख और सुविधाओं को पाना आसान है लेकिन भक्ति कर ईश्वर को पाना कठिन है। अरे, भक्ति तो ऐसी होनी चाहिए कि भगवान स्वयं आपके पास दौडे आये। एक बार कथा के दौरान संत महात्मा ने कथा सुनाई कि एक चोर था। उसे पता चला कि पारस मणि ( पत्थर ) को लोहे पर रगडा जाये तो लोहा सोना बन जाता हैं। बस चोर को यह बात पसंद आ गई।

उसने मन ही मन में विचार किया कि हो न हो संत महात्मा के पास पारस मणि मिल जायेगी और वह संत महात्मा के पास गया और जोर जोर से रोने लगा इस दुनियां में कोई किसी का नहीं है। गरीब को कोई पूछता ही नहीं है। हर कोई मतलबी है। बस महात्मा जी आप मुझे अपना चेला बना लीजिए। लेकिन महात्मा जी तो पहुंचे हुए संत महात्मा थे। वे समझ गये कि यह चोर है और चोरी की नियत से आया है।

उन्होंने चोर को माला दे दी और कहा कि बस माला फैरते रहिए। चार पांच दिन निकले। महात्मा ने शिष्य की परीक्षा लेनी चाही और कहा कि मैं जंगल की पहाडी पर जा रहा हूं। इधर महात्मा जी गये उधर चोर ने मणि को ढूंढना शुरू किया। सुबह से शाम हो गई लेकिन पारस मणि नहीं मिली। उधर महात्मा जी भी आ गये।

उन्होंने अपनी कुटिया को बिखरा देखा तो शिष्य से पूछा कि क्या आज कुटिया कि साफ सफाई की। इस पर वह चोर बोला, कैसी साफ सफाई। मैं तो पारस मणि ढूंढ रहा था। इस पर महात्मा ने कहा कि वो तो सामने अलमारी में लोहे की डिबिया में पडी है। यह सुनकर चोर चौंक गया और बोला, यह कैसे हो सकता है। पारस मणि त़ो ल़ोहे को सोना बना देती है फिर यह डिबिया सोना क्यों नहीं बनी।

तब महात्मा जी ने कहा कि तुम डिबिया तो खोलो। चोर ने जब डिबिया खोली त़ो पारस मणि एक काले कपडे में लिपटी हुई थी। महात्मा ने कहा कि यह कपडा पारस मणि और लोहे की डिबिया के बीच एक पर्दा था जिसके कारण दोनों एक-दूसरे के सम्पर्क में न आ सके और लोहे की डिबिया सोना नहीं बन पाई। ठीक उसी प्रकार हमारी आंखों के आगे अज्ञानता रूपी पर्दा है जिसके कारण हम परमात्मा से नही मिल पा रहे है। यह सुनकर वह चोर उसी क्षण महात्मा जी का शिष्य बन गया और भक्ति में लीन हो गया। भक्ति में स्वार्थ का भाव नही होना चाहिए। वह निस्वार्थ भाव की होनी चाहिए।

डाक टिकट हमारी राष्ट्रीय धरोहर : माथुर


भक्ति और ईश्वर... चोर ने जब डिबिया खोली त़ो पारस मणि एक काले कपडे में लिपटी हुई थी। महात्मा ने कहा कि यह कपडा पारस मणि और लोहे की डिबिया के बीच एक पर्दा था जिसके कारण दोनों एक-दूसरे के सम्पर्क में न आ सके और लोहे की डिबिया सोना नहीं बन पाई। ठीक उसी प्रकार हमारी आंखों के आगे अज्ञानता रूपी पर्दा है... #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

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