आजादी के मायने ही भूल गये
आजादी के मायने ही भूल गये… जिससे अनेक बार पीड़ित पक्षकार न्याय मिलने के से पहले ही परलोक सिधार जाता हैं। न्याय सभी के लिए ऐसा हो कि पीड़ित पक्षकार को दो चार माह में ही न्याय मिल सके। आज अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद हो गये कि उन्हें कानून का कोई डर नहीं है। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
आजादी के वक्त हमारे पूर्वजों ने कल्पना की थी कि आजाद भारत के लोग एक दूसरे की मदद करेगें और देश में अमन-चैन कायम होगा तथा आपसी प्रेम स्नेह, मिलनसारिता, वात्सल्य, की भावना जागृत होगी। लोग सेवा भाव की भावना से कार्य करेगें। लडाई झगडे, राग ध्देष, हिंसा, बेईमानी और भ्रष्टाचार जैसी बुराइयों से मुक्ति मिलेगी और नये भारत का नव निर्माण होगा।
लोग सभी तरह से खुशहाली के साथ जीवन व्यतीत करेगें. आजादी के दो ढाई दशक तक तो देश में अपार खुशहाली देखने को मिली। लेकिन फिर धीरे धीरे बेइमानी, भ्रष्टाचार, हिंसा, राग ध्देष, चोरी चकारी, लूटपाट, खून खराबे का दौर आरम्भ हो गया। जिसकी लाठी उसकी भैंस का प्रचलन चल पडा। अपराधियों के सामने हमारी सुरक्षा व्यवस्था लाचार साबित होने लगी।
इंसान जो कोर्ट-कचहरी, अस्पतालों व पुलिस थानों से दूर था वही आज इनकी शरण ले रहा हैं। पिछले 3-4 दशकों से तो देश के हालत इतने खराब हो गये है कि लोग पुलिस थानों व न्यायालयों की शरण लेने से भी कतरा रहा हैं। न्यायालय के ध्दार खटखटाना हर किसी के बूते की बात नहीं है। चूंकि न्याय पाने में ही वर्षो लग जाते हैं धन दौलत वाले येन केन प्रकारेण मामले को लटकाया रखना चाहते हैं.
जिससे अनेक बार पीड़ित पक्षकार न्याय मिलने के से पहले ही परलोक सिधार जाता हैं। न्याय सभी के लिए ऐसा हो कि पीड़ित पक्षकार को दो चार माह में ही न्याय मिल सके। आज अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद हो गये कि उन्हें कानून का कोई डर नहीं है।
वे पीड़ित पक्षकार पर ऐसे काबिज होते है कि वे अपने प्राणों की रक्षा की खातिर मौन रहना ही बेहतर समझते है नतीजन जिसकी लाठी उसकी भैंस का सिध्दांत चल रहा हैं। अगर यह कहा जाये कि हम भले ही आज पढ लिख गये लेकिन मानसिक रूप से आज भी आजाद नहीं हुए हैं तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।