आपके विचार

कलमकार की कलम से

साहित्य जगत का भविष्य कैसा होगा? यह सोच कर ही चिंता हो रही हैं। कौन देगा इन वरिष्ठ साहित्यकारों को सम्मान यह तो वक्त ही बताएगा। हां इतना स्पष्ट है कि इस समय वरिष्ठ साहित्यकारों के लिए बुरा समय चल रहा हैं। इसे हम नकार नहीं सकते। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

कोरोना काल क्या आया, साहित्यकारों की कलम को जंग लगा गया। उनके सपनों को चूर चूर कर गया। कोरोना काल में दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्र पत्रिकाओं पर संकट के बादल छा गए और इनमें से अनेक पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद हो गया और इसके स्थान पर व्हाट्सएप पर पत्र पत्रिकाएं आने लगी।

आन लाइन पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ। इसी के साथ पुराने साहित्यकारों का भी अस्तित्व लुप्त होने लगा। चूंकि सोशल मीडिया पर आने वाली पत्र पत्रिकाओं के रचनाकार इधर उधर से रचनाएं मार कर या फिर हेर फेर करके अपने नाम से प्रकाशित कराने लगे।‌ इससे वास्तविक रचनाकारों की रचनाओं पर संकट के बादल छाने लगे।
यहां भी प्रकाशन में युवा पीढ़ी व पुरानी पीढी के बहाने पुराने रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित होना धीरे धीरे बंद हो रही हैं।

उनकी रचनाएं यदा कदा ही प्रकाशक की मेहरबानी हुई तो प्रकाशित हो जाती हैं। वरना जय श्री राम। साहित्यकारों को मिलने वाला मानदेय ( पारिश्रमिक ), लेखकीय प्रति, सम्मान पत्र, पहले ही बंद हो चुके है। आन लाइन लेखन पर कभी कभी जो प्रशस्ति-पत्र मिलते थे। वे भी बंद हो गये। इतना ही नहीं पाठक भी कंजूस हो गये। वे आनलाईन रचनाओं पर अपनी टिप्पणी करना भी बंद कर दिया बाजार में इस समय जो पत्र पत्रिकाएं मिल रही हैं उनकी कीमत अधिक होने से हर पाठक पत्र पत्रिकाओं को खरीद नहीं पढ पा रहा हैं।

यही वजह है कि आज पाठक पत्र पत्रिकाओं से दूर होते जा रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी गहन चिंतन मनन लेखन के लिए नहीं कर रही है। उसके लेखन में कहीं भी नयापन नजर नहीं आ रहा है। गहन चिंतन मनन की बात तो दूर की बात हैं। आज का पत्रकार भी आंखों देखा सत्य नहीं लिखता है तो साहित्यकार क्या खाक लिखेगा। पहले का साहित्य का इतिहास देखे तो पता चलता है कि उस वक्त पत्र पत्रिकाओं का सम्पादक मंडल रचनाकारों को पूरा मान सम्मान देते थे।

लेखकीय प्रति के अलावा पारिश्रमिक भी चैक या मनीआर्डर ध्दारा प्रेषित किया जाता था। लेकिन व्हाट्सएप पर वह बात कहां है? मान सम्मान तो दूर। अब तो पत्र पत्रिकाओं की सदस्यता ग्रहण करने को बाध्य किया जाता है अन्यथा आपकी रचना प्रकाशित करने में संपादक मंडल असमर्थ हैं। जो छपास के रोगी है वे यह पीडा झेल कर भी अति प्रसन्न है, चूंकि हर अंक में उनकी रचना के साथ फोटों जो छप रहे हैं।

जबकि वरिष्ठ रचनाकार इस परिपाटी के खिलाफ बिगुल बजा रहे हैं और इसे साहित्य जगत का अपमान बता रहे हैं, आत्म सम्मान वाला साहित्यकार कभी भी किसी से ऐसा समझौता नहीं करता है। नतीजन नये व युवा रचनाकार अपना नाम, फोटों हर अंक में देखने की चाह में पत्र पत्रिकाओं की सदस्यता ग्रहण कर पुराने व वरिष्ठ साहित्यकारों के मार्ग में भले ही बाधक बन जाये, लेकिन वे श्रेष्ठ साहित्य का सृजन नहीं कर सकते।

चूंकि श्रेष्ठ साहित्य सृजन गहन चिंतन मनन चाहता है और इसके लिए युवाओं के पास वक्त नहीं है। साहित्य जगत का भविष्य कैसा होगा? यह सोच कर ही चिंता हो रही हैं। कौन देगा इन वरिष्ठ साहित्यकारों को सम्मान यह तो वक्त ही बताएगा। हां इतना स्पष्ट है कि इस समय वरिष्ठ साहित्यकारों के लिए बुरा समय चल रहा हैं। इसे हम नकार नहीं सकते।


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