आपके विचार

माँ : सूक्ष्म शब्द, गहन विश्लेषण

माँ : सूक्ष्म शब्द, गहन विश्लेषण, वर्तमान समय में सर्वत्र मिलावट विद्यमान है, पर माँ का व्यक्तित्व तो मिलावट शब्द का अर्थ नहीं जानता। माँ को अपनी संतान के हिस्से की चाइल्ड साइकोलॉजी, ह्यूमन साइकोलॉजी भी आती है। माँ तो ममता की जन्मदात्री है और संतान के जीवन की अधिष्ठात्री है। #डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

माँ कितना सूक्ष्म शब्द है, पर उसके भीतर छिपी गहराई, विशालता और प्रगाढ़ता कितनी अनंत और अथाह है। माँ के जीवन में संतान के लिए अनंत खुशियों का खजाना समाहित होता है। माँ के जीवन की धुरी तो संतान की ख़ुशी और भलाई के समीप ही चलायमान होती है। ईश्वर की सृजन की गई सृष्टि में माँ के दुलार, प्यार, स्नेह और करुणा की कोई सीमा नहीं है। माँ तो अनुरागिनी है।

वात्सल्य दायिनी माँ की आँचल की शीतलता तो अनूठी है। उसका आश्रय पाकर तो बड़ी से बड़ी कठिनाई भी न्यून स्वरुप धारण कर लेती है। माँ का स्नेह पाकर तो मन में प्रसन्नता के प्रसून खिल जाते है। प्यार, दुलार, ममता और स्नेह की प्रतिमूर्ति ही तो है माँ। माँ सदैव अपनी संतान को सुख की छाँव प्रदान करना चाहती है और सदैव उसकी नाव को कुशलतापूर्वक किनारे पर गतिमान करना चाहती है।

जब ईश्वर ने भी संतान स्वरुप पाया तो वे एक माँ के प्यार से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए देवकीनंदन और यशोदानन्दन कहलाएँ। कौशल्या नंदन श्रीराम ने तो तीन माताओं के दुलार और प्यार को प्राप्त किया। माँ का होना तो जीवन में मिठास भर देता है। जिस प्रकार मिष्ठान में मिठास का कारण शर्करा होती है उसी प्रकार जीवन की मिठास भी माँ का प्यार और दुलार होता है। माँ तो जीवन से भी प्यार करना सीखा देती है। ईश्वर ने तो संतान के लिए माँ को सारे कोर्स करवा कर ही भेजा है। कभी डॉक्टर, कभी शेफ, कभी टीचर, कभी मार्गदर्शक, कभी दोस्त और कभी-कभी तो संतान के हित के लिए तो वह शत्रु का रूप भी धारण कर लेती है।

वर्तमान समय में सर्वत्र मिलावट विद्यमान है, पर माँ का व्यक्तित्व तो मिलावट शब्द का अर्थ नहीं जानता। माँ को अपनी संतान के हिस्से की चाइल्ड साइकोलॉजी, ह्यूमन साइकोलॉजी भी आती है। माँ तो ममता की जन्मदात्री है और संतान के जीवन की अधिष्ठात्री है। माँ के जीवन की घड़ी तो संतान की दिनचर्या के अनुरूप ही टिक-टिक की ध्वनि करती है। यह घड़ी अनवरत संतान की उन्नति एवं विकास के लिए प्रयासरत होती है। जिंदगी की मधुरता में माँ का ही तो गान छुपा होता है। जिंदगी में जहाँ प्रत्येक रिश्ता स्वार्थ के पायदान पर खड़ा है वहीं निःस्वार्थ प्रेम की वसुंधरा का स्वरुप है माँ।

माँ में सूर्य सा तेज, चन्द्रमा सी शीतलता, सागर सा अथाह स्नेह एवं जल सी पारदर्शिता होती है। माँ तो पालनकर्ता एवं परामर्शदाता है। बचपन की अटखेलियों में मेरा रूठ जाना और माँ का मनाना, माँ का हाथों से खाना खिलाना, गलतियों पर धमकाना की पापा को बता दूँगी, परीक्षा देकर आने पर मेरा पसंदीदा खाना बनाना, हल पल माँ द्वारा मेरा हौसला बढ़ाना, गलतियों पर कसम देकर सच बुलवाना, भूखे नहीं रहना रात को यह कहकर खाना खिलाना, यह सब कुछ भावनाओं की असीम श्रृंखला है जो मेरी माँ से जुड़ी है।

त्याग का इतना स्वरुप तो केवल माँ ही हो सकती है, जो संतान के लिए अपना सर्वस्व अर्थात नींद, भोजन, खुशियाँ, स्वास्थ्य, पसंद-नापसंद सबकुछ त्याग कर देती है। ममता की यात्रा इतनी सहज नहीं होती पर जब बात संतान की होती है तो माँ इस यात्रा को पूर्ण उत्साह से अविराम तय करती है। वैसे तो माँ से हर दिन होता है, वह प्रत्येक क्षण पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण से मातृत्व को सहेजती है, तो इस मातृत्व दिवस पर हम यही मंगलकामना करते है कि सभी के जीवन में माँ के प्रेम की अविरल धारा अनवरत बहती रहें।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights