सामंजस्य
सामंजस्य… यह पहले गरजती है और फिर बरसती है। सामंजस्य बनि कर उसने बात को संभाल लिया और अपनी पत्नी की बेइज्जती नहीं होने दी। वह चाहता तो वह भी क्रोधित होकर पत्नी की पिटाई कर सकता था लेकिन उसने ऐसा नही किया। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
आदर्श जीवन व्यतीत करने के लिए जीवन में सामंजस्य का भाव होना नितांत आवश्यक है। लेकिन आज का इंसान बात बात पर झगडा कर बैठता है। उसमें सहनशीलता, धैर्य, त्याग व सामंजस्य का भाव कही भी नजर नहीं आता हैं। यहां तक कि वह छोटी-छोटी बातों को लेकर हिंसा पर उतारू हो जाता है, जो उचित नहीं है।
एक कथा के दौरान कथा वाचक पंडित जी ने कहा कि एक व्यक्ति की पत्नी बडी ही झगड़ालू थी बात बात पर वह लडती झगडती रहती थी लेकिन वह व्यक्ति उसकी आदत को जानता था। इसलिए सामंजस्य बनाये रखता था व कभी भी पत्नी को न तो पलट कर जवाब देता था और न ही उस पर क्रोध करता था। हर बार वह बात को हंस कर टाल दिया करता था।
एक बार घर में उस व्यक्ति के कुछ मित्र मिलने आये। उस समय उसकी पत्नी उस व्यक्ति को खरी खोटी सुना रही थी। मित्रों ने सब कुछ सुन लिया। थोडी देर बाद उसकी पत्नी ने क्रोध में आकर पानी से भरा मटका उठाया और पति के सिर पर दे मारा। इस पर वह व्यक्ति अपने साथियों से बोला, इसका स्वभाव ही ऐसा है।
यह पहले गरजती है और फिर बरसती है। सामंजस्य बनि कर उसने बात को संभाल लिया और अपनी पत्नी की बेइज्जती नहीं होने दी। वह चाहता तो वह भी क्रोधित होकर पत्नी की पिटाई कर सकता था लेकिन उसने ऐसा नही किया। जीवन में जहां सामंजस्य का भाव होता है, वहां कभी भी झगडा नहीं होता है।
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