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वक्त की पुकार

एकांत में घने छायादार वृक्ष ही हमारे सच्चे मित्र है जो हमें न केवल भीषण गर्मी से बचाते है अपितु उनकी छांव में बैठने से जो प्राकृतिक हवा मिलती हैं वह अन्यत्र दुर्लभ है। इसके अलावा इनकी छांव में खाट लगाकर गप्प शप्प की जाये या अध्ययन किया जाये तो कब समय निकल जाये पता ही नहीं चलता है।  #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)

पर्यावरण संरक्षण के प्रयास आज के समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता है लेकिन इसके लिए किये जा रहे तमाम तरह के प्रयास गति इसलिए नहीं पकड़ पा रहे हैं चूंकि आज व्यक्तिगत स्वार्थ सर्वोपरि हो गये है। आज पर्यावरण संरक्षण की बातें पत्र पत्रिकाओं तक ही सीमित होकर रह गई है। हर व्यक्ति 5 सितंबर को पौधारोपण करते हुए अपने फ़ोटो छपवा कर इतिश्री कर रहे हैं और अपने स्वार्थ की खातिर हर कोई हरे भरे वृक्षों को कटवाने पर तुला है और बहुमंजिली इमारतें बना रहे है।

कोई जमीन से तेल, कोई बजरी तो कोई जल निकाल कर रातों रात लखपति व करोड़पति बनने में लगे हुए हैं । लेकिन अपने घर के बाहर पौधारोपण कर उसकी पूरी देखभाल करने की जिम्मेदारी नहीं ले रहा हैं। नतीजन पर्यावरण के प्रयास गति नहीं पकड़ पा रहे हैं। जनता यह भूल रही है कि वृक्ष न केवल धरती के आभूषण ही है अपितु यह हमें जीवनदायिनी आक्सीजन भी प्रदान करते हैं । इसका आभास जनता को कोरोना काल में अवश्य ही हुआ।

लेकिन आज पर्यावरण संरक्षण मात्र लोक दिखावा बनकर रह गया है जो उचित नहीं है। जनता-जनार्दन से तो अच्छे वृक्ष ही है जो हमें हर रोज फल, फूल, हरियाली, भीणी भीणी सुगंध, छाया और सूखने के बाद इनकी लकड़ियां जलाने के काम आती है। फिर भला इंसान इतना स्वार्थी क्यों हो गया है कि वह हरे भरे वृक्षों को काटने पर तुला हैं।

एकांत में घने छायादार वृक्ष ही हमारे सच्चे मित्र है जो हमें न केवल भीषण गर्मी से बचाते है अपितु उनकी छांव में बैठने से जो प्राकृतिक हवा मिलती हैं वह अन्यत्र दुर्लभ है। इसके अलावा इनकी छांव में खाट लगाकर गप्प शप्प की जाये या अध्ययन किया जाये तो कब समय निकल जाये पता ही नहीं चलता है। इसलिए हरे भरे वृक्षों को काटने से रोके और धरती माता को हरा भरा कर शुद्ध आक्सीजन का सेवन कर जीवन को आनन्ददायक बनाये। यही वक्त की पुकार है।वृक्ष है तो कल है।


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