आपके विचार

आखिर अब क्यों नही बढ़ते किसी की मदद को हाथ

बात-बात में जलील होना पड़ता है, लेकिन आर्थिक मदद लेने वालों के कान में जूं तक नहीं रेंगती। अब तो मैंने ऐसे लोगों से अपने रुपए मांगना ही छोड़ दिया है। लेकिन हां, एक बात जरूर है मैंने ऐसे लोगों से दूरी जरूर बना ली है, क्योंकि ऐसे लोगों से दूर रहने में ही भलाई है। #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश

साथियों, आज आप से एक ऐसे विषय पर अपने विचार साझा कर रहा हूं,जिससे कभी न कभी आपका भी सामना हुआ होगा। समय-समय पर आपने ऐसे बहुत से लोगों की उस समय आर्थिक मदद की होगी, जिस समय उनके सगे-संबंधियों ने भी उनकी मदद करने से अपने हाथ पीछे खींच लिये थे। आपको अच्छी तरह याद होगा कि आपसे आर्थिक मदद लेने के लिए लोगों ने क्या-क्या हथकंडे अपनाए थे। वास्तव में ऐसे लोग बहुत ही शातिर दिमाग के होते हैं।

जब इनको किसी से मदद लेनी होती है तब ये इतनी आत्मीयता से पेश आते हैं कि कुछ पूछिए ही मत।बात-बात में आपकी तारीफों के पुल बांधते हैं और ऐसा जताते हैं कि मानो इनसे बड़ा आपका कोई दूसरा हितैषी है ही नहीं। लेकिन जैसे ही इनका स्वार्थ सिद्ध होता है, ये अपना रंग दिखाना शुरू कर देते हैं। यद्यपि कि आपसे मदद लेते समय ये महीने या दो महीने में आपका रुपया वापस लौटाने की बात करते हैं, लेकिन निर्धारित समय सीमा बीत जाने के बाद भी येआपका रूपया वापस लौटाना मुनासिब नही समझते।

आप जब कभी इनसे रूपए लौटाने की बात करते हैं तो हर बार ये एक नया बहाना बनाते हैं। बात यही पर खत्म नहीं होती। अब आप जब भी इन्हें रूपए लौटाने के लिए टोकते हैं तो ये आपसे बड़ी ही बेरुखी से पेश आते हैं,और हर बार एक ही बात कहते हैं कि कहीं भागे थोड़े जा रहे हैं, जहां इतने दिन इंतजार किया कुछ दिन और इंतजार कर लीजिए‌। रुपयों का इंतजाम होते आपका पाई-पाई चुका दूंगा। कुछ दिन‌ और इंतजार करने के बाद जब आप फिर रुपए लौटाने की बात करते हैं तो फिर इनसे कोई नया बहाना सुनने को मिलता है।

आप जब भी इनसे अपना रूपया मांगते हैं तो आपको सिर्फ मिलती है हताशा और निराशा। वास्तव में देखा जाए तो इनकी ऐसी कोई मजबूरी नही होती है जिसके चलते ये आपका रूपया वापस लौटा नहीं पाएं, बल्कि सच बात तो यह है कि ये आपका रूपया वापस लौटाना ही नहीं चाहते। साथियों मैं स्वयं इसका भुग्तभोगी हूं। मैंने अपने ऐसे कई परिचितों की उनके बुरे दिनों में आर्थिक मदद की, लेकिन गरज निकल जाने के बाद इन लोगों ने मुझसे ही किनारा कर लिया।

अब जब कभी अचानक आमना- सामना होता है और उनसे अपने रूपए लौटाने की बात करता हूं तो उनका पारा सातवें आसमान पर चढ़ जाता है, और अंत में यही सुनने को मिलता हैं, अरे यार कहीं भागे थोड़े जा रहे हैं, जल्दी ही दे देंगे।न जाने वो जल्दी वाला दिन कब आएगा,और मुझे मेरे रूपया वापस मिल पाएंगे। साथियों आज मेरे परिचित ऐसे दर्जनों लोग हैं जिनकी मैंने आज से कई साल पहले आर्थिक मदद की थी, और आज वो मुझसे बेहतर स्थिति में है, अच्छा खा रहे हैं, अच्छा पहन रहे हैं ,यहां तक कि विलासिता पूर्ण जीवन जी रहे हैं, इसके बावजूद भी मुझसे उधार लिए रूपए वापस लौटाना जरूरी नही समझते।

विगत दस वर्षों में मैंने दर्जनों लोगों की आर्थिक मदद करके अपनी गाढ़ी कमाई के लाखों रुपए गंवाएं हैं, लेकिन मदद लेने वाले निर्लज्ज लोगों ने आज तक मेरे रूपए वापस नही लौटाए। साथियों अब आप ही बताएं कि कोई व्यक्ति अपनी जमापूंजी के लाखों रुपए गंवाने के बाद क्या किसी व्यक्ति की मदद करने की हिम्मत जुटा पाएगा। शायद नहीं।पहले लोग मदद करने वालों को भगवान के समान मानते थे।

उन्हें पूजते थे,और मदद करने वालों का एहसान जिंदगी भर नही भूलते थे। लेकिन अब तो वो जमाना आ गया है कि दूसरों की आर्थिक मदद करने के बाद अपना ही रूपया  भिखारियों की तरह मांगना पड़ता है, उल्टी- सीधी बातें सुननी पड़ती हैं। बात-बात में जलील होना पड़ता है, लेकिन आर्थिक मदद लेने वालों के कान में जूं तक नहीं रेंगती। अब तो मैंने ऐसे लोगों से अपने रुपए मांगना ही छोड़ दिया है। लेकिन हां, एक बात जरूर है मैंने ऐसे लोगों से दूरी जरूर बना ली है, क्योंकि ऐसे लोगों से दूर रहने में ही भलाई है।


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