पीले चावल
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अब वह समझ गया कि सेठ लक्ष्मीचंद ने हमारी गरीबी का मजाक नहीं उड़ाया, अपितु हमें इस बात का अहसास कराया कि सबके मिलजुल कर रहने से व एकजुटता से ही हम जीवन की हर समस्या का निदान ढूंढ सकते हैं व सेवा भाव से ही समाज व राष्ट्र का विकास व उत्थान सम्भव है। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
सेठ लक्ष्मीचंद ने शोभावतों की ढाणी के बच्चों की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए अपनी माता सरस्वती देवी की स्मृति में शिक्षण संस्थान खोलने के उद्देश्य से ढाणी में पीले चावल बंटवायें ताकि ढाणी का हर बालक व बालिका निशुल्क शिक्षा ग्रहण कर सकें और अपना भविष्य संवार सकें।
बस इसी ध्येय को लेकर उन्होंने ढाणी के हर घर में पीले चावल बंटवायें। गरीबदास के यहां भी पीले चावल पहुंचे और निर्धारित तिथि पर शिक्षण संस्थान आरम्भ हो गई। जब गरीबदास ने पांच सात चावल के दाने देखे तो वह सेठ लक्ष्मी चंद के घर पहुंचा और बोला, सेठ जी पीले चावल देकर तुमने ढाणी वालों का मजाक उड़ाया है।
अगर पीले चावल देने ही थे तो कम से कम एक एक कटोरी तो देते ताकि एक वक्त उन्हें पका कर पेट तो भरते। सेठ लक्ष्मीचंद ने गरीबदास की बात को समझा और उसे गंभीरता से लेते हुए ऊसके यहां हर माह पांच किलो पीले चावल पहुंचाना आरम्भ कर दिया।
इधर स्कूल खुलने से ढाणी के हर घर से बालक बालिकाएं निशुल्क शिक्षा ग्रहण करने लगे। कुछ ही वर्षों में सेठ लक्ष्मीचंद का सपना साकार होने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने ढाणी में एक कालेज भी खोल दिया और विधार्थी ढाणी में ही उच्च शिक्षा हासिल करने लगे। शिक्षा के बाद वे ढाणी में ही अपना कारोबार करने लगे जिससे ढाणी की काया ही पलट गई और सभी घरों मे शिक्षा का दीप जगमगाने लगा।
यह देख सेठ लक्ष्मीचंद अपने अपको आनन्दित महसूस करने लगा। जब गरीबदास के बच्चों ने भी निशुल्क शिक्षा ग्रहण कर अपने पैरों पर खड़े हुए तब गरीबदास को पीले चावल वितरण के रहस्य का पता चला। अब वह समझ गया कि उसके घर पर हर माह पांच किलो पीले चावल जो आ लहे हैं वह सेठ लक्ष्मीचंद की कृपा का ही परिणाम है।
अब वह समझ गया कि सेठ लक्ष्मीचंद ने हमारी गरीबी का मजाक नहीं उड़ाया, अपितु हमें इस बात का अहसास कराया कि सबके मिलजुल कर रहने से व एकजुटता से ही हम जीवन की हर समस्या का निदान ढूंढ सकते हैं व सेवा भाव से ही समाज व राष्ट्र का विकास व उत्थान सम्भव है।
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