CM को E-mail से भेजी शिकायतों पर कोई कार्यवाही नहीं…
(देवभूमि समाचार)
जब – जब चुनाव आते हैं तब तब राजनीतिक दल अनेक वायदे करते हैं और अपने चुनावी घोषणा पत्र में ढेर सारे वायदे करती हैं और सता में आने के बाद वे चुनाव घोषणा पत्र को रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं और लोक कल्याणकारी सरकार की बातें खोखली साबित होती हैं । ठीक इसी प्रकार राजस्थान की गहलोत सरकार नजर आ रही हैं । मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आमजन से ई – मेल से शिकायत व सुझाव भेजने के लिए 4 दिसम्बर 2020 को समाचार पत्रों में गहलोत का नवाचार आमजन अब ई – मेल के जरिये मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को शिकायत , सुझाव व संदेश भेज सकेंगे।
कनिष्ठ लिपिक प्रकरण (1986)
मुख्यमंत्री के निर्देश पर इसके लिए एक नई मेल आई डी बनाई गयी । इस पर भेजे ई- मेल सीधे मुख्यमंत्री तक पहुचेगे । इस ई मेल पर व्यक्तिगत संदेश , गंभीर आपराधिक प्रकरणों तथा अन्याय की शिकायत, समस्याएं और सुझाव भेजे जा सकेंगे । इन पर मुख्यमंत्री कार्यालय त्वरित कार्यवाही कराएगा । मुख्यमंत्री निवास पर नियमित जन सुनवाई नहीं हो पाने और कोराना जनित हालात के मद्देनजर यह व्यवस्था की गई जो टांय-टांय फीस हो गई।
जोधपुर निवासी सुनील कुमार माथुर ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को 21 सितम्बर 2019 को लिखे पत्र के संदर्भ में 4 दिसम्बर 2020 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को न्याय दिलाने बाबत एक ज्ञापन निर्धारित मेल आईडी writetocm@rajasthan.gov.in पर मय दस्तावेज फिर से भेजा लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय से जब कोई जवाब नहीं आया तो माथुर ने 22 फरवरी 2021 को स्मरण पत्र भेजा जिस पर 23 फरवरी को जवाब मिला कि आपका प्रकरण क्रमांक 02213829519054 पर दर्ज किया गया हैं एवं राहत प्रदान करने पर आपकों सू चित किया जायेगा । लेकिन 26 मार्च 2021 को जवाब मिला कि आपका प्रकरण क्रमांक 02213829519054 प्रस्तावित निस्तारण ( रद्द ) कर दिया गया हैं ।
इस पर पीडित पक्षकार सुनील कुमार माथुर ने 26 मार्च 21 को ही पुनः ई मेल से पत्र प्रेषित कर प्रकरण को रद्द करनेका कारण बताने एवं प्रकरण का पुनः अवलोकन करने की मांग की । लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय से कोई जवाब नहीं मिला । तब माथुर ने 28 मई 2021 को पुनः स्मरण पत्र लिखा तब पक्षकार सुनील कुमार माथुर खेद प्रकट करते हुए पुनः सूचना मांगी ताकि शिकायत पुनः दर्ज की जा सकें । माथुर से शिकायत के साथ नाम , मोबाइल नम्बर , शिकायत का विवरण , शिकायत क्षेत्र व अटैचमेंट मांगे गये जो माथुर ने तत्काल भेज दिये लेकिन दो माह बित जाने के बावजूद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई ।
मुख्यमंत्री निवास पर नियमित जन सुनवाई नहीं, व्यवस्था की टांय-टांय फिस…
माथुर ने बताया कि सरकार लोगों को गुमराह कर रही हैं । अगर सरकार पीडित पक्षकार को समय पर न्याय नहीं दिला सकती हैं तो कम से कम लुभावनी घोषणाएं कर पीडित परिवार का मखौल तो न उडाये । समस्या तो समाधान चाहती है न कि दलगत राजनीति माथुर ने बताया कि उन्होंने न्याय दिलाने के लिए 21 सितम्बर 2019 को मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा । मुख्यमंत्री कार्यालय ने यह पत्र कार्मिक विभाग क – 2 की आई डी संख्या 71694 /डी ओ पी / कार्मिक/ क -2 / 2019 दिनांक 4/10/2019 पर मूल ही आवश्यक एवं अग्रिम कार्यवाही हेतु प्रेषित कर दियां और कार्मिक विभाग ने अपने पत्र क्रमांक प 8 ( 4 ) क2 / 2016 दिनांक 11 दिसम्बर 2019 को सचिव , राजस्थान लोक सेवा आयोग अजमेर को प्रेषित कर दिया ।
आयोग ने यह पत्र पत्र क्रमांक 6(2)परीक्षा ग/ कनिष्ठ लिपिक/ पार्ट ।।। / 86 / 1262 दिनांक 28 / 1/ 2020 को यह पत्र इस टिप्पणी के साथ उप शासन सचिव , प्रशासनिक सुधार ( अनुभाग _ 3 ) विभाग , शासन सचिवालय जयपुर को लौटा दिया कि उक्त पत्र आपके विभाग से संबंधित होने के कारण पुनः आवश्यक कार्यवाही हेतु भिजवाया जा रहा है । लेकिन आज तक इस पत्र पर क्या कार्यवाही हुई है इससे मुझे किसी भी विभाग ने वस्तु स्थिति से अवगत नहीं कराया हां पत्र की लोटाफेरी करते हुए एक प्रति मुझे अवश्य ही दी लेकिन वह सूचना समस्या का समाधान नहीं है ।
माथुर ने बताया, सरकार लोगों को गुमराह कर रही है। अगर सरकार पीडित पक्षकार को समय पर न्याय नहीं दिला सकती है तो कम से कम लुभावनी घोषणाएं कर पीडित परिवार का मखौल तो न उडाये ।
क्या है मामला : राजस्थान लोक सेवा आयोग अजमेर द्धारा वर्ष 1986 में कनिष्ठ लिपिक संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की गयी थी । इस परीक्षा के बाद सरकारी सेवा में नियुक्ति के दौरान जमकर धांधली मची । बीकानेर में पदों की संख्या छः से बढाकर चार सौ आठ कर दी और वहां साढे सैंतीस प्रतिशत अंक लाने वाले अभ्यार्थियों को सरकारी सेवा में नियुक्ति दे दी और अन्य जिलों में साठ प्रतिशत अंक लाने वाले अभ्यार्थियों को सरकारी सेवा से वंचित कर दिया ।
तब सफल अभ्यार्थियों ने न्याय के लिए पहले हाईकोर्ट का ध्दार खटखटाया और फिर देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया । सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितम्बर 1993 को सफल अभ्यार्थियों के हक में फैसला दे दिया लेकिन इन सफल अभ्यार्थियों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के करीबन सात साल बाद अप्रैल – मई 2000 में नियुक्तियां दी गई लेकिन 27 सितम्बर 1993 से अप्रैल – मई 2000 तक की अवधि का कोई लाभ नहीं दिया ।
यह समय न तो सेवाकाल में जोडा गया और न ही इस समय का राज्य सरकार ने कोई हर्जाना ही दिया जिसके कारण अनेक अभ्यार्थियों को सरकारी सेवा के दौरान 9 – 18 – 27 का लाभ नही मिला चूंकि उनका सेवाकाल ही करीब- करीब 17 साल ही हुआ जिससे वे 18 – 27 के लाभ से वंचित रह गये वही कम सेवाकाल होने से उनकी पेंशन भी कम बनी जिसकी बजह से इन्हें दौहरी मार झेलनी पड रही हैं। 27 सितम्बर 1993 से अप्रैल मई 2000 की अवधि का सरकार लाभ दिलाये ताकि पीडित पक्षकार को मानसिक व आर्थिक वेदना से मुक्ति मिलें और पीडित पक्षकार को उसका वाजिब हक मिले।
Source : sunilkumarmathur_jodhpur_rajasthan
Nice article
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True
True middle-class ko hamesha se hi har baat ke liye ghumaya jaata hai or uska result kuch bhi nahi aata
True
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