कहानी : अगले जन्म मोहे… (भाग – VI)
कहानी : अगले जन्म मोहे… मैं कोई अनाथ नहीं हूं और हां मैं आपकी शुक्रगुजार हूं कि आपने मुझे डैडी और मम्मा को दे दिया क्योंकि आपके घर में तो ना जाने मैं कैसे पलती और यहां इन लोगों ने मुझे राजकुमारी की तरह पाला है। इन से अच्छे माता पिता तो हो ही नहीं सकते। अब आप दोनों जा सकते हैं, आप दोनों से आज के बाद मेरा कोई संबंध नहीं है। #गीतिका सक्सेना, मेरठ कैंट, उत्तर प्रदेश
अभी निकिता गाड़ी में बैठी ही थी कि उसका फोन फिर बजा। निकिता ने देखा रीमा का फोन है। उसने फोन उठाकर बस उस से इतना ही कहा कि वो और प्रताप कुछ देर में राय मैंशन पहुंच जाएं। इतनी देर सोच विचार करने के बाद निकिता आखिर एक फ़ैसले पर पहुंच गई थी। रास्ते में मान ने निकिता को बताया कि कैसे प्रकाश ने रीमा और प्रताप से सारे रिश्ते खत्म करके उन्हें घर से निकल दिया था। जैसे ही मान और निकिता घर पहुंचे तो प्रकाश और नीलिमा लॉबी में ही बैठे दोनों का इंतज़ार कर रहे थे। निकिता उन्हें देखते ही दोनों के गले लग गई। उसे कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, दोनों उसके मन की बात यूं ही समझ गए। तभी रीमा और प्रताप भी वहां पहुंच गए। उन्हें देखते ही प्रकाश ने गरज कर पूछा,” तुम दोनों यहां कैसे”? मगर निकिता ने बीच में ही कहा, “इन्हें मैंने बुलाया है डैडी। मैं ये पूरा मसला आज ही खत्म कर देना चाहती हूं “।
निकिता ने रीमा और प्रताप को बैठने का इशारा किया और खुद “अभी आती हूं” कहकर अपने कमरे में चली गई। जब वो वापस लॉबी में आई तो वही दबंग निकिता राय बनकर जिससे सब डरते थे। उसने सबसे पहले रीमा से कहा,” मैं आपसे ये पूछना चाहती हूं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि पिछले साल मेरे चौंतीसवें जन्मदिन से आपका हृदय परिवर्तन हो गया? जहां तक मैं समझ पाई हूं आपको बेटी नहीं चाहिए थी और मैं आज भी लड़की हूं”। रीमा ने जवाब दिया,” बेटा तुम कोई आम लड़की नहीं हो। तुम आज जहां खड़ी हो किसी भी मां बाप को तुम पर नाज़ हो सकता है। तुमने हमारी इस धारणा को गलत साबित कर दिया कि लड़कियां सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी हैं। बस यही कारण था कि मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया”। रीमा ने शब्दों का ताना बाना तो अच्छा बुना था मगर वो भूल गई कि शब्दों से खेलना ही निकिता का काम था।
“वाउ मिसेज रीमा राय! अमेजिंग! तो मेरा नाम, रुतबा, धन दौलत देखकर आपका हृदय परिवर्तन हो गया। आपको आज भी बेटी नहीं अपने दोस्तों को, समाज को दिखाने के लिए एक ट्रॉफी चाहिए। मुझे आपसे ऐसी ही उम्मीद थी। पहले आप पर तरस आता था कि आपकी सोच छोटी है लेकिन अब आपसे नफ़रत हो गई है। आज मैं आपको अपना परिचय देती हूं। मैं हूं एडवोकेट निकिता राय। मेरे माता पिता का नाम है, श्री प्रताप राय और श्रीमती नीलिमा राय। मेरे भाई का नाम है अभिमान राय। मैं आज जो कुछ भी हूं इन तीनों की वजह से हूं। अगर किसी को मेरी उपलब्धियों पर गर्व करने का अधिकार है तो इन तीनों को। आपके अंदर अगर ममता इतनी ही जाग रही है तो जाकर किसी अनाथ आश्रम से एक बच्ची गोद ले लीजिए और उसकी सफ़लता का कारण बनिए।
मैं कोई अनाथ नहीं हूं और हां मैं आपकी शुक्रगुजार हूं कि आपने मुझे डैडी और मम्मा को दे दिया क्योंकि आपके घर में तो ना जाने मैं कैसे पलती और यहां इन लोगों ने मुझे राजकुमारी की तरह पाला है। इन से अच्छे माता पिता तो हो ही नहीं सकते। अब आप दोनों जा सकते हैं, आप दोनों से आज के बाद मेरा कोई संबंध नहीं है। आपने अपनी नवजात बच्ची के साथ जो भी किया शायद आपके उन्हीं कर्मों का फल है कि आप निःसंतान हैं”। अभी रीमा कुछ कहने को ही थी कि प्रताप ने गरज कर कहा, “और कितनी बेइज्जती करवाओगी रीमा? तुम्हारी वजह से आज मेरा अपने भाई से कोई रिश्ता नहीं रहा। तुम निहायती खुदगर्ज औरत हो”। इतना कहकर प्रताप रीमा को खींचकर बाहर ले गया।
निकिता ने पलटकर देखा तो मान मंद मुस्कान के साथ उसे देख रहा था और प्रकाश और नीलिमा की आंखों से आंसू बह रहे थे। उसने जल्दी से दोनों को गले लगा लिया और कहा, “आई लव यू मम्मा डैडी। आपके जैसे माता पिता मिलेंगे तो मैं अगले जन्म में भी बेटी ही बनना चाहूंगी”। इतना कहकर निकिता ने ऊपर आसमान की तरफ़ देखा और मानो भगवान से प्रार्थना कह रही हो, ” अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो”।
समाप्त