मां है तो हां है..!
मो. मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
बंद दरवाजे जब सारे हो जाएं ,
तब दरवाजा एक ही नजर आए;
चल मां के आंचल में सर अपना छुपाएं!
गोदी में लिटाए,
सिर हाथ फेरे जाए;
अपनी ममता लुटाए ।
कभी पुचकारे कभी पूछे,
बोल बेटे ;
क्या परेशानी है तुझे ?
बता मैं मां हूं ,
बच्चों की परेशानी समझती हूं।
सच सच बता बात क्या है?
क्यूं तू इतना उदास है ?
बोल ना,
मुंह खोल ना;
कर सकती हूं क्या तेरे लिए ?
मैं तो बनी ही हूं तुम सब के लिए ।
सुन,मम्मी का आश्वासन-
बड़ा सुकून महसूस हुआ,
मां के पैरों को सहलाते-
व्यथा कह दिया।
मां देखी एकटक मुझको ,
मानों कुछ सवाल हो मुझसे, उसको !
फिर कह दी ” हां ”
मेरी खुशी का ठिकाना न रहा।
मां कभी नहीं कहे है ” ना ” !
हां सुन झट उछल पड़ा ,
मैया के पांव पड़ा ;
लिए सफलता का मंत्र निकल पड़ा ।
मन में असीम प्यार लिए..
नापने दुनिया जहां ,
मां की डिक्शनरी में ‘ना’ कहां ?
सो मां कभी नहीं कहे है ” ना ” ।
मां है पूजनीय,
मां है वन्दनीय ।
मां का प्रेम निराला!
ऊपर पालनहार ,
नीचे सिर्फ और सिर्फ
मां का द्वार!
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »मो. मंजूर आलम ‘नवाब मंजूरलेखक एवं कविAddress »सलेमपुर, छपरा (बिहार)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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